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________________ १२८) छक्खंडागमे संतकम्म भहियाणि । एइंदियजादिणामाए अजहण्णटिदिउदीरणाकालो जहण्णण खुद्दाभवगहणं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। बीइंदिय-तीइंदिय-चरिदिय-चिदियजादीणं जहण्णेण अंतोमुहत्तं, संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि। णवरि पंचिदियजादिणामाए संखेज्जाणि सागरोवमाणि । ओरालियसरीरणामाए अजहण्णट्ठिदउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। वेउव्वियसरीरणामाए जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । आहारसरीरणामाए जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । तिण्णमंगोवंगाणमणुक्कस्सभंगो। पंचसंघाद-पंचबंधणाणं पि0 सग-सगसरीरभंगो । समचउरससंठाणणामाए जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेवट्ठि-सागरोवमसदं सादिरेयं । हुंडसंठाणणामाए जहण्णेण एयसमओ, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। सेसाणं संठाणाणं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पुव्वकोडिपुधत्तं । वज्जरिसहवइरणारायणणामाए जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि पुरवकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । सेसाणं संघडणाणं अजहण्णढिदिउदीरणाकालो जहण्णण एगसमओ, - नामकर्मकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे क्षुद्रभवग्रह और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंवेन्द्रिय जातिनामकर्मोंकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे संख्यात हजार वर्ष प्रमाण है। विशेष इतना है कि पंचेन्द्रियजाति नामकर्मकी उक्त उदीरणाका काल उत्कर्षसे संख्यात सागरोपम प्रमाण है। औदारिकशरीर नामकर्मकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र है । वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है। आहारशरीर नामकर्मकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। तीन अंगोपांग नामकर्मोकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल उनकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाके कालके समान है। पांच संघातों और पांच बन्धनोंकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल अपने अपने शरीरनामकर्मके समान है। समचतुरस्रसंस्थान नामकर्मकी अजघन्य स्थितिकी उदीरणाका जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक एक सौ तिरेसठ सागरोपम प्रमाण है। हण्डकसंस्थान नामकर्मकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समयं और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। शेष संस्थानोंकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्य एक समय और उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है। वज्रर्षभवज्रनाराचसंहननकी नामकर्मकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम प्रमाण है। शेष संहननोंकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय ४ मप्रतिपाठोऽयम् । काप्रती 'पसवादरचसघडणागं पि', ताप्रती 'पंचसंघाद-पंचसंघडणाणं पि Jain Education Internation: 1781194991 (पंचबंधण-पंचसंघादाणं पि)' इति पाठः ।..... 199) S ve: Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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