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________________ १२६ ) छक्खंडागमे संतकम्म सोग-चत्तारिगदि-पंचजादि-पंचसरीर-तिण्णिअंगोवंग-पंचसरीरबंधणं-पंचसंघाद-छसंठाण-छसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-चत्तारिआणुपुव्वी-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघादउस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-तस-थावर-बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-थिरादि-छजुगला तित्थयर-णिमिण-उच्च-णीचागोद-पंचंतराइयाणं चदुण्णमाउआणं जहण्णट्ठिदिउदीरणाकालो जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । अजहण्णढिदिउदीरणाकालो पंचणाणावरणीय-चउर्दसणावरणीय-पंचंतराइयतेजा-कम्मइयसरीर-वण्णचउक्क-थिराथिर-सुहासुह-अगुरुअलहुअ-णिमिणणामपयडीणं अणादिओ अपज्जवसिदो, अणादिओ सपज्जवसिदो वा । सादासादाणं अजहण्णट्ठिदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ । उक्कस्सेण सादस्स छम्मासा, असादस्स तेत्तीससागरोवमाणि अंतोमुहुत्तब्भहियाणि । मिच्छत्तस्स अणादिओ अपज्जवसिदो, अणादिओ सपज्जवसिदो, सादिओ सपज्जवसिदोत्ति तिण्णि भंगा। तत्थ जो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरियट्टं। चउसंजलगाणमजहण्णद्विदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्ता हस्स-रदि-अररि-सोगाणं अजहण्णदिदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण हस्स-रदीणं छम्मासा, अरदि-सोगाणं तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । इत्थिवेदस्स अजहण्णदिदिउदोरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, चार संज्वलन, तीन वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, चार गतियां, पांच जातियां, पांच शरीर, तीन अंगोपांग, पांच शरीरबन्धन, पांच संघात, छह संस्थान, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, चार आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक व साधारण शरीर, स्थिर आदि छह युगल, तीर्थंकर, निर्माण, उच्चगोत्र नीचगोत्र और पांच अन्तराय तथा चार आयु कर्म; इनकी जघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय है। अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पांच अन्तराय, तैजस व कार्मण शरीर, वर्णादिक, चार, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु और निर्माण नामकर्मका अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित है। साता व असाता वेदनीयकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय है । उत्कर्षसे वह सातावेदनीयका छह मास और असातावेदनीयका अन्तर्मुहूर्तसे अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है। मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थिति-उदीरणाके कालके अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित, ये तीन भंग हैं। इनमें जो सादि-सपर्यवसित है उसका प्रमाण जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्षसे उपाधं पुद्गलपरिवर्तन है । चार संज्वलन कषायोंकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त मात्र है। हास्य, रति, अरति और शोककी अजघन्य स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय है। उत्कर्षसे वह हास्य व रतिका छह मास तथा अरति व शोकका साधिक तेतीस सागरोपमप्रमाण है। स्त्रीवेदकी अजघन्य स्थितिJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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