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उवकमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीग्णाए एगजीवेण अंगरं
( ७ ?
उवघादणामाए उदीरणंतरं जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि समया । परघाद-उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-सुस्सर-दुस्सराणमुदीरणंतरं जहण्णमंतोमुहुत्तं केवलिसमुग्घादं पडुच्च पंचसमया । उक्कस्सेण परघादुस्सासाणमंतोमुत्तं पसत्थापसत्थविहायगइ-सुस्सर--दुस्सराणमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । आदावु-- ज्जोवाणं जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालं* । तसणामाए जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । थावर-बादर-सुहुम-पज्जत्तअपज्जत्ताणं उदीरणंतरं जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण थावरणामाए तसटिदि०, सुहुमणामाए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, बादरणामाए असंखेज्जा लोगा, पज्जत्तणामाए अंतोमुहत्तं, अपज्जत्तणामाए तसपज्जत्तद्विदी। पत्तेयसाहारणाणं जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण पत्तेयसरीरणामाए णिगोददिदी, साहारणसरीरणामाए असंखेज्जा लोगा। जसगित्ति-अजसगित्ति-सुभग-दुभग-आदेज्ज-अणादेज्जाणमंतर जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण जसगित्तीए असंखेज्जा लोगा, सुभग-आदेज्जाणं असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, अजसगित्ति-दूभग-अणादेज्जाणं सागरोवमसदपुधत्तं । तित्थयरणामाए णत्थि अतरं । उच्चाणीचागोदाणं जहण्णेण एगसमओ । उक्कस्सेण णीचा
असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। उपघात नामकर्मकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तीन समय प्रमाण है। परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर और दुस्वर नामकर्मोकी उदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त, मात्र है, केवलिसमुद्घातकी अपेक्षा वह पांच समय प्रमाण है । उत्कर्षसे वह परवात व उच्छ्वासका अन्तर्मुहुर्त, तथा प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगतियों, सुस्वर और दुस्वर नामकर्मोंका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है । आतप व उद्योतका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण है। त्रस नामकर्मका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त और अपर्याप्त नामकर्मोकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त मात्र है। उत्कर्षसे वह स्थावर नामकर्मका त्रसस्थिति ( साधिक दो हजार सागरोपम ), सूक्ष्म नामकर्मका अंगुलके असंख्यातवें भाग, बादर नामकर्मका असंख्यात लोक, पर्याप्त नामकर्मका अन्तर्मुहूर्त, तथा अपर्याप्त नामकर्मका त्रस पर्याप्तकी स्थिति प्रमाण है । प्रत्येक और साधारणका अन्तर जघन्यसे एक समय है । उत्कर्षसे वह प्रत्येकशदीर नामकर्मका निगोदस्थिति प्रमाण तथा साधारणशरीर नामकर्मका असंख्यात लोक प्रमाण है । यशकीर्ति, अयशकीर्ति, सुभग, दुर्भग, आदेय और अनादेयका अन्तर जघन्यसे एक समय है । उत्कर्षसे वह यशकीर्तिका असंख्यात लोक, सुभग व आदेयका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन; तथा अयशकीर्ति, दुर्भग और अनादेयका सागरोपमशतपथक्त्व प्रमाण है तीर्थकर प्रकृतिकी उदीरणाका अन्तर सम्भव नहीं है । ऊंच व नीच गोत्रोंका अन्तर जघन्यसे एक समय है। उत्कर्षसे नीच गोत्रकी उदीरणाका वह अन्तर सागरोपम
*प्रत्योरुभयोरेव 'अणंता लोगा' इति परः।०काप्रतिगोऽयम् । ता-मप्रत्यो: 'तस्स दिदी '
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