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________________ २ ) सू० सं० सट्टा पृ० सं० सूत्राणि तेउलेस्से त्ति वा पम्मले से त्ति वा सुक्कलेस्से त्ति वा असंजदेत्ति वा अविरदेत्ति वा अण्णाणे त्ति वा मिच्छादिट्ठित्ति वा जे चामण्णे एवमादिया कम्मोदयपच्चइया उदयविवागपिण्णा भावा सो सव्वो विवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम 1 १६ जो सो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम सो दुविहो- उवसमिओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो चेव खइयो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो चेव । १२ १७ जो सो ओवसमियो अविवागपच्चइयो Jain Education International ११ जीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- से उवसंत कोहे उवसंतमाणे उवसंतमाए उवसंतलोहे उवसंतरा उवसंतदोसे उवसंत मोहे उवसंतकसायवीय रागदुत्थे उवसमियं सम्मत्तं उवसमियं चारितं जं चामण्णे एवमादिया उवसमिया भावा सो सव्व उवसमियो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम । १८ जो सो खइओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंध णाम तस्स इमो णिद्देसोसेखीणको खीणमाणे खीणमाये खीणलोहे खीणरागे खीणदोसे खीणमोहे खीणकसायवीयरायछदुमत्थे खइयसम्मत्तं खइयचारितं खइंया दाणलद्धी खइया लाहलद्धी खइया भोगलद्धी खइया परिभोगलद्धो खइया वीरियलद्धी केवलणाणं केवलदंसणं सिद्धे बुद्धे परिणिव्वुदे सव्वदुक्खाणमंतयडे त्ति जे चामण्णे एवमादिया खइया भावा सो सव्वो खइयो अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम । १९ जो सो तदुभयपच्चइयो जीवभावबंधो नाम तम्स इमो णिद्देसो- खओवसमय एइंदियलद्धित्ति वा खओव १५ १४ सूत्राणि सू० सं० समियं वीइंदियलद्धित्ति वा खओवसमियं तीइंदियलद्धित्ति वा खओवसमियं चउरिदियलद्धि त्ति वा खओवसमियं पंचिदियलद्धित्ति वा खओवसमियं मदिअण्णाणि त्ति वा खओवसमियं सुदअण्णाणि त्ति वा खओवसमियं विहंगणाणि त्ति वा खओवसमियं आभिणिबोहियणाणि त्ति वा खओवसमियं सुदणाणित्ति वा खओवसमियं ओहिणाणि त्ति वा खओवसमियं मणपज्जवणाणि त्ति वा खओवसमियं चवखुदसणित्ति वा खओवसमियं अचक्खुदंसणित्ति वा खओवसमियं ओहिदंसणि त्ति वा खओवसमियं सम्मामिच्छत्तलद्धि ति वा खओवसमियं सम्मत्तलद्धित्ति वा खओवसमियं संजमासंजमलद्धित्ति वा खओवस मियं संजमलद्धि त्ति वा खओवसमियं दाणलद्धि त्ति वा खओवसमियं लाहलद्धित्ति वा खओवसमिय भोगलद्धि त्ति वा खओवसमियं परिभोगलद्धित्ति वा खओवसमियं वीरियलद्धित्ति वा खओवसमियं से आयारघरे त्ति वा खओवसमियं सूदयडघरे त्ति वा खओवसमियं ठाणधरे त्ति वा खओवसमियं समवायधरेत्ति वा खओवसमियं वियाहपण्णत्तधरे त्ति वा खओवसमियं नाहधम्मधरे त्ति वा खओवसमियं उवासयज्झेणधरे त्ति वा खओवसमियं अंतयडधरे त्ति वा खओवसमियं अणुत्तरोववादियदतधरे त्ति वा खओवसमियं पण्णवागरणधरे त्ति वा खओवसमियं विवागसुत्तधरे त्ति वा खओवसमियं दिट्टिवादधरे त्ति वा खओवसमियं गणित्ति वा खओवसमियं वाचगे त्ति बा खओवसमियं For Private & Personal Use Only पृ० स० www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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