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________________ ५, ६, ७५० ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५५१ पाओग्गाणि जाणि दव्वाणि ताणि घेत्तण सच्च-मोस-सच्चमोस-असच्चमोसमासाणं सरूवेण तालुवादिवावारेण परिणमाविय जीवा महादो णिस्तारेति ताणि दव्वाणि भासादविवग्गणा णाम | भासावववग्गणाणमुवरिमगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७४५ ॥ अगहणदव्ववग्गणा णाम का ॥ ७४६ ।। अगहणवव्ववग्गणा भासादब्वमधिच्छिदा मणदव्वं ण पावेवि ताणं दवाणमंतरेर अगहणदव्ववग्गणा पाम ॥ ७४७॥ सुगममेदं सुत्तत्तियं। अगहणदव्ववग्गणाणमुवरि मणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७४८॥ मणदव्ववग्गणा णाम का ।। ७४९ ॥ मणवव्ववग्गणा चउव्विहस्स* मणस्स गहणं पवत्तदि ।७५०। एदाणि वि सुगमाणि। सच्चमणस्स मोसमणस्स सच्चमोसमणस्स असच्चमोसमणस्स जाणि सत्यभाषा, मोषभाषा, सत्यमोषभाषा और असत्यमोषभाषारूपसे परिणमाकर जीव मुखसे निकलते हैं, अतएव उन द्रव्योंकी भाषाद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । भाषाद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर जो होती है उसकी अग्रहणद्रव्ववर्गणा संज्ञा है ।। ७४५ ।। अग्रहणद्रव्यवर्गणा क्या है । ७४६ ।। अग्रहणद्रव्यवर्गणा भाषाद्रव्यवर्गणासे प्रारंभ होकर मनोद्रव्यको नहीं प्राप्त होती है, अतः उन द्रव्योंके मध्य में जो होती है उसकी अग्रहणद्रव्यवर्गणा संज्ञा है।७४७१ ये तीन सूत्र सुगम हैं। अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर जो होती है उसको मनोद्रव्यवर्गणा संज्ञा है। ७४८ । मनोद्रव्यवर्गणा क्या है । ७४९ । मनोद्रव्यवर्गणा चार प्रकारके मनरूपसे ग्रहण होकर प्रवृत्त होती है । ७५० । ये सूत्र भी सुगम हैं। सत्यमन, मोषमन, सत्यमोषमन और असत्यमोषमनके जिन द्रव्योंको ग्रहणकर ४ ता० प्रती ' ताणि ( णं ) दवाणमंतरे ' का० प्रती ' ताणि दव्वाणमंतरे' इति पाठः । * का० प्रती ' -वग्गणाए चउवहस्स' इति पाठ:1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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