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________________ ५४४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ७२० णिद्देसो जुज्जदे ? ण, जादिदुवारेण एयत्तमावण्णाए वत्तिभेदेण* जणिदबहुत्तं पडि बहुवयणणिद्देसुववत्तीदो। __ अगहणपाओग्गाओ इमाओ एयपदेसियसव्वपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाओ ॥ ७२० ॥ पंचण्णं सरीराणं गहगपाओग्गाओ ण होंति हथिहत्थस्स सरिसओ व्व । कुदो ? साभावियादो। इमा दुपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम किं गहणपाओग्गाओ किमगहणपाओग्गाओ || ७२१ ॥ सुगममेदं पुच्छासुत्तं । अगहणपाओग्गाओ ॥ ७२२ ।। एवं पि सुगमं । एवं तिपदेसिय-चदुपदेसिय-पंचपदेसिय-छप्पदेसिय-सत्तपदेसियअट्ठपदेसिय-णवपदेसिय-वसपदेसिय-संखेज्जपदेसिय-असंखेज्जपदेसियअणंतपदेसियपरमाणपोग्गलदव्ववग्गणा णाम कि गहणपाओग्गाओ समाधान-- नहीं, क्योंकि, यद्यपि जातिको अपेक्षा वह एक है फिर भी व्यक्तिभेदसे वह बहुत्वको प्राप्त है, इसलिए बहुवचन निर्देश बन जाता है। ये एक प्रदेशी सब परमाणपुद्गलद्रव्यवर्गणायें अग्रहणप्रायोग्य हैं ॥७२०॥ जिस प्रकार हाथीके हाथसे सरसों ग्रहण योग्य नहीं होता है उसी प्रकार ये पाँच शरीरोंके ग्रहणयोग्य वहीं होती हैं, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । यह द्विप्रदेशी परमाणपुद्गलद्रव्यवर्गणा क्या ग्रहणप्रायोग्य होती हैं या क्या अग्रहणप्रायोग्य होती हैं ॥ ७२१ ॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है। अग्रहणप्रायोग्य होती हैं । ७२२ । यह सूत्र भी सुगम है। इस प्रकार त्रिप्रदेशी, चतुःप्रदेशी, पंचप्रदेशी, षट्प्रदेशी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दशप्रदेशी संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी ४ का. प्रती ' तत्थ गहणपाओग्गाओ ति बहवयणणिदेसो ( ण- ) जज्जदे ' इति पाठ।। * ता० प्रती 'एयत्तमावण्णाए वं ( वे ) तिभेदेण' इति पाठ। 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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