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________________ ५, ६. ६८२ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया णिल्लेवणटाणेसु आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तेसु गदेसु वेउब्वियसरीरस्स उक्कस्सजिल्लेवणढाणं थक्कदिक । तदो समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तेसु पिल्लेवणट्टाणेसु गदेसु ओरालियसरीरस्स उक्कस्सपिल्लेवट्ठाणं थक्कदि । तेण जहाकम दिसेसाहियाणि । एस्थ अप्पाबहुगं- सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स णिल्लेवट्ठाणाणि ॥ ६७९॥ कारणं सुगमं । वेउब्वियसरीरस्स गिल्लेवणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।६८०। केत्तियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तेण । आहारसरीरस्स गिल्लेवणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६८१ । केत्तियमेत्तेण? आवलियाए असंखेज्जविभागमेतेण । एवं गंथमस्सिदूण पढमसंदिट्ठी परूवेयत्वा । संपहि बादर-सुहमणिगोदपज्जत्ते अस्सितूण मरणजवमझादीणं परूवणठें उत्तरसुत्तं भणदि। तत्य इमाणि पढमवाए आवासयाणि होति ॥ ६८२ ॥ और वैक्रियिकशरीरके निर्लेपनस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जानेपर वैक्रियिक शरीरका उत्कृष्ट निर्लेपनस्थान श्रान्त होता है। उसके बाद एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थानोंके जाने पर औदारिकशरीरका उत्कृष्ट निर्लेपनस्थान श्रान्त होता है। इसलिए ये यथाक्रम विशेष अधिक हैं। यहांपर अल्पबहुत्व- औदारिकशरीरके निर्लेपनस्थान सबसे स्तोक हैं ।६७९। कारणका कथन सुगम है। वैक्रियिकशरीरके निलेपनस्थान विशेष अधिक हैं ॥ ६८० ॥ कितने अधिक हैं ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक है। आहारकशरीरके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं ।। ६८१ ॥ कितनेमात्र अधिक हैं ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक हैं। इस प्रकार ग्रंथका आश्रय लेकर प्रथम संदृष्टिका कथन करना चाहिए। अब बादर निगोद पर्याप्त और सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंका आश्रय लेकर मरणयवमध्य आदिका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं-- वहां सर्वप्रथम ये आवश्यक होते हैं ।। ६८२ ॥ ४ का० प्रती '-णिल्लेवणं धक्कदि ' इति पाठ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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