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________________ ५, ६, ६७३ ) बंणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५२३ मत्तेसु आणापाणपज्जत्तीए णिव्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु तदो आहारसरीरस्स उक्कस्स आणापागपज्जत्तिव्वितिट्ठाणं थक्कदि । तदो उवरि ओरालिय- वे उव्वियसरीराणं समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे-भागमेत्तेसु आणापाणपज्जत्तीए णिव्वतिट्ठाणेसु गदेसु तदो वेउव्वियसरीरस्स आणापाणपज्जत्तीए उक्कस्सणिव्वत्तिद्वाणं थक्कदि । तदो उवरि समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तेसु ओरालियसरी रस्स आणापाणपज्जत्तीए णिव्वत्तिट्ठाणेसु गदेषु तदो ओरालिय सरीरस्स उक्कस्तआणापाणपज्जत्तीए निव्वत्तिद्वाणं थक्कदि । तेणेदाणि द्वाणाणि जहाकमेण विसेसाहियाणि । तदो एसिमुक्कट्टाहतो उवरिमंतोमृहुत्तं गंतून आहारसरीरस्स मासाप - ज्जत्तीए जहणणिव्वत्तिद्वाणं होदि । तदो उवरि समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे ०भागमेत्तेसु आहारसरीरस्ल भालापज्जत्तीए निव्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु वे उव्वियसरीरस्स भासापज्जत्तीए सव्वजहण्णणिव्वत्तिद्वाणं होदि । तदो उवरि वेउध्वियआहारसरीराणं समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे ० भागमेत्तेसु भासाणिव्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु ओरालियसरीरस्स सव्वजहणं भासाणिव्वत्तिद्वाणं होदि । तदो उवरि ओरालिय-वेउब्वियआहारसरीराणं भासाणिव्वत्तिट्ठाणेसु आवलि० असंखे ० भागमेत्तेसु गदेसु आहारसरीरस्स भासापज्जतीए उक्कस्सणिव्वत्तिद्वाणं थक्कदि । तदो ओरालिय-वेउविवयसरीराणं समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु भासावज्जत्तीए स्थानोंके जानेपर उसके बाद आहारकशरीरकी आनापानपर्याप्तिका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है । उसके बाद ऊपर औदायिकशरीर और वैक्रियिकशरीरके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण आनापान पर्याप्ति के निर्वृत्तिस्थानोंके जाने पर उसके बाद वैयिकशरीरकी आनापान पर्याप्तिका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है । उसके बाद ऊपर औदारिकशरीरकी आनापानपर्याप्तिके निर्वृत्तिस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रम से आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जाने पर उसके बाद औदारिकशरीरका आनापानपर्याप्तिका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है । इसलिए ये स्थान क्रम से विशेष अधिक हैं । अनन्तर इनके उत्कृष्ट स्थानोंसे ऊपर अन्तर्मुहूर्त जाकर आहारकशरीरकी भाषापर्याप्तिका जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है । इसके बाद ऊपर आहारकशरीर के भाषापर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थानों के एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जाने पर वैक्रियिकशरीरकी भाषापर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है । उसके बाद ऊपर वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण भाषानिर्वृतिस्थानोंके जाने पर औदारिकशरीरका सबसे जघन्य भाषानिवृत्तिस्थान होता है । उसके बाद ऊपर औदारिकशरोग, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके भाषानिर्वृत्तिस्थानों के आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जानेपर आहारकशरीरकी भाषापर्याप्तिका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है। उसके बाद औदारिकशरीर और वैक्रियिकशरीरकी भाषापर्याप्ति के निर्वृत्तिस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यतावें भागप्रमाण ऊपर जाने पर वैक्रियिकशरीर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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