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________________ ४८०) छक्खंडागमे वग्गणा-खंच ( ५, ६, ६१२ वक्कमणादक्कमणकालाणं समासो पबंधणकालो णाम। सो जहण्णओ वि अस्थि उक्कस्सओ वि अस्थि । तत्थ जहण्णो उक्कस्सादो सोहिदे पबंधणकालविसेसो होदि । सो विसेसाहियाओ । केत्तियमेत्तण ? जहण्णवक्कमणकाले उक्कस्सवक्कमणकालम्मि सोहिदे सुद्धसेसमेत्तेण । आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तेण ति भणिदं होदि । जहण्णपदेण जहण्णओ अवक्कमणकालो असंखेज्जगुणो ।६१२। को गुणगारो? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । जहण्णपदेण जहण्णओ पबंधणकालो विसेसाहिओ ॥ ६१३ ॥ केत्तियमेत्तेण? जहण्णवक्कमणकालमत्तेण । उक्कस्सपदेण उक्कस्सओ अवक्कमणकालो विसेसाहिओ।६१४। केत्तियमेत्तो विसेसो ? जहण्णवक्कमणकालेणूणअवक्कमणकालवितेसमेत्तो । उक्कस्सपदेण उक्कस्सओ पबंधणकालो विसेसाहिओ ।६१५। केत्तियमेत्तेण ? उक्करसवक्कमणकालमत्तेण । एवं कालअप्पाबहुअं समत्तं । प्रक्रमण और अप्रक्रमण कालोंका समुदाय प्रबन्धन काल है। वह जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है। वहाँ उत्कृष्टमें से जघन्यको कमकर देनेपर प्रबन्धनकालविशेष होता है। वह विशेष अधिक है। कितना अधिक है? उत्कृष्ट प्रक्रमण कालमेंसे जघन्य प्रक्रमणकालको घटा देनेपर जो शेष रहे उतना अधिक है। वह आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। जघन्य पदकी अपेक्षा जघन्य अप्रक्रमण काल असंख्यातगुणा है ।। ६१२ ।। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । जघन्य पदको अपेक्षा जघन्य प्रबन्धनकाल विशेष अधिक है ।। ६१३ ॥ कितना अधिक है ? जघन्य प्रक्रमणकालका जितना प्रमाण है उतना अधिक है। उत्कृष्ट पदको अपेक्षा उत्कृष्ट अप्रमणकाल विशेष अधिक है ।। ६१४ ।। विशेषका प्रमाण कितना है ? जघन्य उपक्रमकालसे न्यून अप्रक्रमणकाल विशेषका जितना प्रमाण है उतना विशेष का प्रमाण है। उत्कृष्ट पदको अपेक्षा उत्कृष्ट प्रबन्धनकाल विशेष अधिक है ।। ६१५ ॥ कितना अधिक है ? उत्कृष्ट प्रक्रमणकालका जितना प्रमाण है उतना अधिक है। सइप्रकार काल अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ४ ता० प्रती — उक्कस्सपबंधणकालो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org' |
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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