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________________ हमखंडागमे वग्वणा - खंड ( ५, ६,५८७ दिभागमेत्तवक्कमणकंडयाणमणंतरोवणिधा वत्तव्वा । भागहारो सव्वत्थ आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो वक्कमंतजीक्वमाजुप्पाघणे होदि । परंपरोवणिधा णत्थि । कुबो ? समयं पडि असंखेज्जगुणहीनाए सेडीए जीवाणं वक्कमणुवलंभादो । अप्पाबहुअं दुविहं-- अद्धाअध्याबहुअं चेव जीवअप्पाबहुअं चेव ॥ ५८७ ॥ एवमप्पा बहुअं दुविहं चेव होदि, तदियादीणमसंभवादो । अद्धाअप्पा बहुए त्ति सव्वत्थोवो सांतरसमए वक्कमणकालो ॥ ५८८ ॥ ४७४ ) को सांतरसमए वक्वणमकालो* णाम | पढमवक्कमणकंडयकालं मोतृण विदियादिवक्कमणकंडयाणं सयलकालकलावो । निरंतरसमए वक्कमणकालो असंखेज्जगुणो ॥ ५८९ ॥ को निरंतरसमए वक्कमणकालो ? पडमवक्कमण कंडयद्धाणं, तत्थंतराभावादो । को गुण ०? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । उपक्रमण काण्डकों की अनन्तरोपनिधा कहनी चाहिए। सर्वत्र उत्पन्न होनेवाले जीवोंका प्रमाण उत्पन्न करने के लिए भागहार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है । परंपरोपनिधा नहीं है, क्योंकि, प्रत्येक समय में असंख्यातगुणे हीन श्रेणिरूपसे जीवोंकी उत्पत्ति उपलब्ध होती है । अल्पबहुत्व दो प्रकारका है- अद्धाअल्पबहुत्व और जीव अल्पबहुत्व । ५७८ । इस प्रकार अल्पबहुत्व दो प्रकारका ही होता है, क्योंकि, तृतीय आदिका अभाव है । अद्धा अल्पबहुत्वकी अपेक्षा सांतर समय में उपक्रमणकाल सबसे स्तोक है । ५८८ | शंका -- सान्तर समय में उपक्रमणकाल किसे कहते हैं ? समाधान -- प्रथम उपक्रमण काण्डकके कालको छोडकर द्वितीय आदि उपक्रमणकाण्डकोंके समस्त कालकलापको सान्तर समय में उपक्रमणकाल कहते हैं । निरन्तर समयमें उपक्रमणकाल असंख्यातगुणा है । ५८९ । शंका -- निरन्तर समय में उपक्रमण काल किसे कहते हैं ? समाधान -- प्रथम उपक्रमण काण्डकके कालको निरन्तर समय में उपक्रमणकाल कहते हें क्योंकि, वहां पर अन्तरका अभाव है । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । अ० का० प्रत्योः इति पाठ: । इति पाठ । Jain Education International - अस्थि ' इति पाठ! | प्रतिष् ॐ अ० का० पत्योः सांतरसमयवक्कमणकालो बक्कमणकालो णाम ? पढमवक्कम कालो णाम For Private & Personal Use Only · परमवक्कमण www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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