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________________ ४६६ ) उपखंडागमे वग्यणा-खंच आउकाइयजीवा विसेसाहिया ।। ५७२ ।। केत्तियमेत्तो विसेसो ? असंखेज्जा लोगा । वाउक्काइया जीवा विसेसाहिया ।। ५७३ ।। केत्तियमेत्तो विसेसो ? असंखेज्जा लोगा । autoविकाइया जीवा * अनंतगुणा ।। ५७४ ॥ को गुणगारो ? सव्वजीवरासिस्स असंखेज्जदिभागो । एवं जीव अप्पा बहुअं समत्तं । ( ५, ६,५७२ पदेसअप्पा बहुए त्ति सव्वत्थोवा तसकाइयपदेसा ।। ५७५ ।। घणलोग गुणिदतत्थतणतसजीवपमाणत्तादो । तेक्काइयपदेसा असंखेज्जगुणा ॥ ५७६ ॥ पुढविकाइयपदेसा विसेसाहिया । ५७७ । आउक्काइयपदेसा विसेसाहिया । ५७८ । वाक्कायपदेसा विसेसाहिया । ५७९ । arthविकाइयपदेसा अनंतगुणा । ५८० । Jain Education International उनसे अकायिक जीव विशेष अधिक हैं ।। ५७२ ॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? विशेषका प्रमाण असंख्यात लोक है । उनसे वायुकायिक जीव विशेष अधिक हैं | ।। ५७३ ।। विशेषका प्रमाण कितना है ? विशेषका प्रमाण असंख्यात लोक है । उनसे वनस्पतिकायिक जीव अनन्तगुणे हैं ।। ५७४ ।। गुणकार क्या है ? सब जीवराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । इस प्रकार जीव अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । प्रदेश अल्पबहुत्वकी अपेक्षा त्रसकायिक जीवोंके सबसे स्तोक हैं । ५७६ । यहाँ स जीवोंके प्रमाणको घनलोकसे गुणित करनेपर उनके प्रदेशों का प्रमाण प्राप्त होता है। उनसे अग्निकायिक जीवोंके प्रदेश असंख्यातगुणे हैं । ५७६ । उनसे पृथिवीकायिक जीवोंके प्रदेश विशेष अधिक हैं । ५७७ । उनसे अकायिक जीवोंके प्रदेश विशेष अधिक हैं । ५७८ । उनसे वायुकायिक जीवोंके प्रदेश विशेष अधिक हैं । ५७९ । उनसे वनस्पतिकायिक जीवोंके प्रदेश अनन्तगुणे हैं । ५८० । XxX अ० प्रती 'वाउक्काइया' इति पाठा 1 अ० का० प्रतो' वगष्फदिकाइया' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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