SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खं ( ५, ६, ४२९ णिसित्तपदेसगं तस्स सादिरेयदोरूवाणि भागहारो होदि । जं चरिमसमए पबद्धं णोकम्मपदेसग्गं तस्स एगरूवं भागहारो होदि । एवं दोहि पयारेहि भागहारपरूवणा कदा। संपहि पढमिलाणसेगोवदेसमस्सिदूण समयपबद्धपमाणाणुगमो वच्चदे । तं जहा- चरिमसमए संचिदपदेसग्गमेगसमयपबद्धमत्तं होदि, तत्थ वयाभावादो। दुचरियसमए संचिदपदेसग्गं किंचूणेगसमयपबद्धमेत्तं होदि, पढमणिसेगाभावादो। तिचरिमसमयसंचिदपदेसग्गं किंचणेगसमयपबद्धमेतं होदि, पढम बिदियगिसेगाभावादो । एवं गंतूण पढमसमयसंचिवदव्वमेगसमयपबद्धस्स असंखेज्जदिभागो होदि चरियणिसेयपमाणत्तादो । जेणेवं तेण सबमेदं दव्वं दिवगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धपमाणं होदि । अंतोमहत्तमेत्तसमयपबद्धा होति ति भावत्थो । संपहि णिसेगस्स बिदियमवदेसमस्सिरण समयपबद्धपमाणाणुगमं कस्सामो । तं जहा- तिण्णं पलिदोवमाणं चरिमसमए संचिदपदेसग्गं तमेगसमयपबद्धमत्तं होदि, वयाभावादो । जं दुचरिमसमयसंचिददव तं तमेगसमयपबद्धस्स किंचूगमद्धं होदि, गलिदसादिरेयद्धत्तादो । जं तिचरिमसमयसंचिददव्वं तं समयपबध्दस्स किंचूणतिभाग. मेतं होदि, गलिदसादिरेयवेत्तिभागत्तादो। एवं पलिदोवमेण जाणिदूण गेयत्वं अर्धभागको निक्षिप्त करता है । पुनः अन्तिम समयमें जो निक्षिप्त प्रदेशाग्र है उसका साधिक दो अंक भाग होता है। तथा अन्तिम समयमें जो बद्ध नोकर्म प्रदेशाग्र है उसका एक अंक भागहार होता है। इस तरह दो प्रकारसे भागहार प्ररूपणा की। अब पहलेके निषेकोपदेशका अवलम्बन लेकर समयप्रबद्धोंके प्रमाणका अनुगम करते हैं। यथा- अन्तिम समयमें संचित हुआ प्रदेशाग्र एक समयप्रबद्ध प्रमाण होता है, क्योंकि, उसके व्ययका अभाव है। द्विचरम समयमें संचित हुआ प्रदेशाग्र कुछ कम एक समयप्रबद्धप्रमाण होता है, क्योंकि, अन्तमें इसके प्रथम निषेकका अभाव है । त्रिचरिम समयमै संचित हुआ प्रदेशाग्र कुछ कम एक समयप्रबद्धप्रमाण होता है, क्योंकि, अन्तमें इसके प्रथम और द्वितीय निषेकका अभाव है। इस प्रकार जाकर प्रथम समयमें संचित हुआ द्रव्य एक समयप्रबद्धके असंख्या भागप्रमाण शेष रहता है. क्योंकि, अन्तमें उसका अन्तिम निषेकमात्र उपलब्ध होता है। यतः इस प्रकार है अत: यह सब द्रव्य डेढगुणहानिमात्र समयप्रबद्धप्रमाण होता है। अन्तर्मुहूर्तके जितने समय हैं उतने समयप्रबद्ध होते हैं यह उक्त कयनका भावार्थ है। ___अब निषेकके द्वितीय उपदेशका अवलम्बन लेकर समयप्रबद्धोंके प्रमाणका अनुगम करते हैं । यथा- तीन पल्योंके अन्तिम समयमें जो संचित हुआ है वह एक समयप्रबद्धप्रमाण होता है, क्योंकि, उसके व्ययका अभाय है। जो द्विचरम समय में संचित हुआ द्रव्य है वह एक समयप्रबद्धका कुछ कम अर्धभागप्रमाण होता है, क्योंकि, इसका साधिक अर्धभाग गल चुका है । जो तृतीय समयमें संचित द्रव्य है वह समयप्रबद्धका कुछ कम तृतीय भागमात्र होता है, -योंकि, इसके तीन भागोंमेंसे साधिक दो भाग गल चुके हैं । इस प्रकार पल्योपमके द्वारा जान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org'
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy