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________________ ३८२ ) ( ५, ६, ३६७ जहण्णुक्कस्सपदेण सव्वत्थोवं ओरालियसरीरस्स चरिमाए ट्ठिदीए पदेसग्गं ।। ३६७ ॥ कुदो ? उक्कस्सट्ठिदिसंजुत्तपरमाणुपोग्गलाणं बहुआणमणुवलंभादो । ९ ।। चरिमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पवेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ३६८ ॥ को गुण० ? किंचूणदिव ड्डगुणहाणीओ ९ १०० । कुबो चरिमगुणहाणिदव्वे चरिमणियमाणेण कदे किंचूणदिवडूगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेगाणं तत्युवलंभादो । पढमाए ट्ठिीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ३६९ ॥ किचनण्णोष्ण ९ को गुण ० ? असंखेज्जा लोगा । किंचूजदिवडुगुणहाणिना १०० मत्थसिम्हि मागे हिदे जं भागलद्धं सो गुणगारो त्ति घेत्तव्वं ५१२ । अपढम - अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गमसंखेज्ज-गुणं ॥ ३७० ॥ को गुण० ? अंतोमुहुत्तं । गुणहाणीए तिष्णिचदुब्भागेण सादिरेगेणऊणविवड्ड छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ५१२ जघन्य उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा औवारिकशरीरको अन्तिम स्थितिमें प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है । ३६७ । Jain Education International क्योंकि, उत्कृष्ट स्थितियुक्त बहुत परमाणु नहीं उपलब्ध होते । उससे अन्तिम गुणहाणिस्थानान्तर में प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । ३६८ ॥ गुणकार क्या है ? कुछ कम डेढ गुणहानिप्रमाण गुणकार है १००, क्योंकि, अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको अन्तिम निषेकके प्रमाणसे करने पर कुछ कम डेढ गुणहानि प्रमाण अन्तिम निषेक उपलब्ध होते हैं । उससे प्रथम स्थिति में प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा । ३६९ । गुणकार क्या है ? असंख्यात लोकप्रमाण गुणकार है । कुछ कम डेढ गुणहानि १०० का कुछकम अन्योन्याभ्यस्त राशि 2' में भाग देनेपर जो भाग लब्ध आवे वह गुणकार है : ) ५१२ । ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए | ( ५१२ : १०० ९ ५१२ १०० ५१२ X १०० १ १०० उससे अप्रथम- अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । ३७०। गुणकार क्या है ? अन्तर्मुहूर्तप्रमाण गुणकार है । गुणहानिके तीन बटे चार भाग से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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