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________________ ३७४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं पढमाए ट्ठिदीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ३४२ ॥ तिण्णं पलिदोवमाणं पढमसमए जं गिसित्तं पदेसग्गं तं पढमद्विदिपदेसरगं नाम । तं चरिमसमए पढेसग्गादो असंखेज्जगणं । को गुण ? असंखेज्जा लोगा। तं जहाअंतोमहत्तमेत्तगणहाणीए तिसु पलिदोवमेसु ओवट्टिवेसु लद्धं गाणागुणहागिसलागाओ होति । एवासि किंचूणण्णोण्णब्भत्थरासिपमाणमेदं ११९ । एदेण चरिमणिसेगे गणिदे जेण पढमणिसेगो होदि तेण गणगारो असंखेज्जा लोगा। असंखेज्जलोगमेत्तं कुदोणव्वदे ? परियम्मादो। तं जहा- बेरूवे वग्गिज्जमाणे वग्गिज्जमाणे पलिदोवमस्स असंखे०भागमेत्ताणि वग्गणट्टाणाणि उवरि गंतूण पलिदोवमच्छेदणयपमाणं पावदि । तं सई वग्गिदं सूचिअंगलच्छेवणयपमाणं पावदि । ते छेदणया दुगणिदा पदरंगलच्छेदणया होति । घणंगलच्छेदणया दुब्भागभहिया । उद्धारपल्लमसखेज्जगणं । दीवसागररूवाणि संखेज्जगणाणि । रज्जच्छेवणया विसेसाहिया । सेडिच्छेदणा विसेसाहिया । जगपवरच्छेदणा दुगणा । घणलोगच्छेदणा दुब्भागभहिया । एवं घणलोगच्छेदणयपमाणं भणिदं । तदो गियत्तिदूण सूचिअंगुलच्छेदणया वग्गिज्जमाणा वग्गिज्जमाणा पलिदोवमस्स असंखे०भागमेत्ताणि वग्गणट्टाणाणि उवरि गंतूण पलिदोवम उससे प्रथम स्थितिमें निषिक्त प्रदेशाग्र असंख्यातगणा है ॥ ३४२ ।। तीन पल्योंके प्रथम समयमें जो प्रदेशाग्र निषिक्त है उसकी प्रथम स्थितिप्रदेशाग्र संज्ञा है। वह अन्तिम समय में निषिक्त प्रदेशाग्रसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? असख्यात लोक है। यथा- अन्तर्मुहर्तप्रमाण गुणहानिका तीन पल्योंमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उतनी नानागुणहानिशलाकायें होती हैं। इनकी कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि का प्रमाण इतना है पर । इससे अन्तिम निषेकके गुणित करने पर यतः प्रथम निषेकका प्रमाण होता है, अत: गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है। शंका-- गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- परिकमसूत्रसे जाना जाता है । यथा- दोका उत्तरोत्तर वर्ग करने पर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण वर्गणास्थान ऊपर जाकर पल्यके अर्धच्छेदोंका प्रमाण प्राप्त होता है। उसका एक बार वर्ग करने पर सूच्यंगुलके अर्धच्छेदोंका प्रमाण प्राप्त होता है। उन अर्धच्छेदोंको दूना करने पर प्रतराड्.गुलके अर्धच्छेद होते हैं। उनसे घनाइ.गुलके अर्धच्छद द्वितीय भागप्रमाण अधिक हैं। उनसे उद्धारपल्यका प्रमाण असंख्यातगणा है। उससे द्वीपों और सागरोंकी संख्या संख्यातगुणी है। उससे राजुके अर्धच्छेद विशेष अधिक है। उनसे जगश्रेणिके अर्धच्छेद विशेष अधिक है। उनसे जगप्रतरके अर्घच्छेद दूने है। उनसे घनलोकके अर्धच्छेद द्वितीय भागप्रमाण अधिक हैं। इस प्रकार घनलोकके अर्घच्छेदोंका प्रमाण कहा है। यहाँसे लोटकर सूच्यंगुलके अर्धच्छेदोंका उत्तरोत्तर वर्ग करके पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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