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________________ (२६३ ५, ६, १६७. ) बधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए फोसणपरूवणा अवगद-अकसाइ-केवलणाणि जहावखादविहार • केवलदंसणीसु तिसरीरेहि के० खेत्तं फोसिद ? अदीद - वट्टमाणे० लोग० असंखे ० भागो असंखेज्जा भागा सव्वलोगो वा । वादे विभंगणाणीसु तिसरीरेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे ० लोग असंखे ० भागो, अदीदेण अट्ठ तेरह चोद्द सभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा । चदुहि सरीरेहि के० खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे० लोग० असंखे० भागो, अदीदेण सव्वलोगो । आभिणि-सुद-ओहिणाणीसु चदुसरीर-विसरीरेहि के० खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे ० लोग० असंखे०भागो, अदीदेण छ चोहसभागा देसूणा । तिसरीरेहि के०खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे ० लोग० असंखे०भागो, अदोदेण अट्ठ चोदसभागा देणा । मणपज्जवणाणीसु तिसरीर-चदुसरीरेहि के० खेत्तं फोसिदं ? अदीद - वट्टमाणेण लोग० असंखे० भागो । संमाणुवादे संदेसु तिसरीरेहि के० खेत्तं फोसिदं ? अदीद- वट्टमाणेण लोग० असंखे० भागो असंखेज्जा भागा सव्वलोगो वा । चउसरोरेहि फे० खेत्तं फोसिदं ? अदीद- वट्टमाणे ० लोग० असंखे ० भागो । सामाइय-च्छेदोवद्वावणसुद्धिसंजदाणं क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अपगतवेदी, अकषायी, केवलज्ञानी, यथाख्यातविहार बिशुद्धिसंयत और केवलदर्शनी जीवों में तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? अतीत और वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । ज्ञानमार्गेणा के अनुवाद से विभंगज्ञानी जीवोंमें तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ आठ बटे चौदह भाग, कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । चार शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में चार शरीरवालें और दो शरीरवाले जीवोंसे कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीतकालकी अपेक्षा त्रसनालीकें कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मन:पर्ययज्ञानी जीवों में तीन शरीरवालों और चार शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं ? अतीत और वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । संयममागणाके अनुवादसे संयतोंमें तीन शरीरवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? अतीत और वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ! अतीत और वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवे भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सामायिकशुद्धिसंयत और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंमें मन:पर्ययज्ञानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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