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________________ ५, ६, १६७, ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरी रपरूवणाए फोसणपरूवणा (२५९ असंखे० भागो, अदीदेण तिण्णि अद्ध चत्तारि अद्धपंचम पंच चोइसभागा देसूणा । तिसरीरेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे० लोग० असंखे० भागो०, अदीदेण अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा। आणद-पाणद-आरण-अच्चुदकप्पवासियदेवेसु बिसरीर-तिसरीरेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे० लोग० असंखे० भागो०, अदीदेण छ चोद्दसभागा देसूणा। णवगेवेज्जविमाणवासियदेवप्पहुडि जाव सव्वसिद्धिविमाणवासियदेवेसु बिसरोर-तिसरीरेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? अदीद-वट्टमाणेण लोग० असंखे० भागो। इंदियाणुवादेण एइंदिय-बादरेइंदिय-बादरेइंदियपज्जत्तएसु बिसरीर-तिसरीरएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? अदीद-वट्टमाणे० सव्वलोगो। चदुसरीरेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणे० लोग० असंखे० भागो, अदीदेण सव्वलोगो। बादरेइंदियअपज्जत्तलोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा त्रसनालिके चौदह भागोंमेंसे ऋससे कुछ कम तीन भाग, कुछ कम साढे तीन भाग, कुछ कम चार भाग, कुछ कम साढे चार भाग और कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालको अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत काल की अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आनत प्राणत, आरण और अच्युत कल्पवासी देवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालको अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा असनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नो ग्रेवेयेक विमानवासी देवोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवों तक इनमें दो शरीरवालों और तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? अतीत और वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ - सब देवोंमें जिसका जो उपपाद पदकी अपेक्षा स्पर्शन बतलाया है वह यहां दो शरीरवालोंका स्पर्शन जानना चाहिए और शेष तीन शरीरवालोंका जानना चाहिए। यहां आनत-प्राणत कल्पोंमें दो शरीरवालोंका भी स्पर्शन त्रसनाली के कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। सो यह सामान्य कथन प्रतीत होता है, क्योंकि कुछ कम साढे पांच भाग राजुका अन्तर्भाव कुछ कम छह बटे चौदह भागमें हो जाता है । वास्तवमें इनमें उपपादपदकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम साढे पांच भागप्रमाण बतलाया है अतः यहां दो शरीरवालोंका स्पर्शन भी इतना ही प्राप्त होगा। आगे भी सब स्पर्शन इन विशेषताओंको ध्यानमें रखकर घटित कर लेना चाहिए। इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय बादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालों और तीन शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? अतीत काल और वर्तमान कालकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार शरीरवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त तथा सूक्ष्म अ० प्रती० तिण्णि चत्तारि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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