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________________ ५,६, १६७.) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए फोसणपरूवणा (२५७ पुढवीए खेत्तभंगो। विदियादि जाव समत्तपुढवि त्ति बिसरीरा-तिसरीरएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? वट्टमाणेण लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अदीदेण एक्क-वे-तिण्णि-चत्तारिपंचछचोद्दसभागावा देसूणा ? तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु सामण्णतिरिक्ख-कायजोगि-णवंसयवेद-कोह-माणमाया-लोभकसाइ-मदि-सुदअण्णाणि-असंजद-अचक्खुदंसणि-किण्ण-णील - काउलेस्सियभवसिद्धि-अभवसिद्धि-मिच्छाइटि-असण्णीसु ओघभंगो । पंचिदियतिरिक्ख पंचिदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिदियतिरिक्खजोणिणीस बिसरीर-तिसरीर-चदुसरीरेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? वट्टमाणेण लोगस्स असंखे०भागो, अदीदेण सव्वलोगो। पंचिदिय तिरिक्खअपज्जत्त-मणुसअपज्जत्त-वेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियपज्जत्तापज्चत्ता-पंचिदिय अपज्जत्त-तसअपज्जत्तएस बिसरीर-तिसररिएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणेण लोगस्स असंखे भागो, अदीदेण सव्वलोगो। मणुसगदीए मणुस-मणुसपज्जत्त-मणुसिणी बिसरीर-चदुसरीरएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? वट्टमाणेण लोगस्स असंखे०भागो, अदीदेण सव्वलोगो । तिसरीरेहि अपेक्षा असनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पहली पृथिवी में क्षेत्रके समान भंग है । दूसरोसे लेकर सातवीं तकको पृथिवियोंमें दो शरीरवालें और तीन शरीरवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमानकालकी अपेक्षा लोककें असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और अतीत कालकी अपेक्षा क्रमसे त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम एक भाग, कुछ कम दो भाग, कुछ कम तीन भाग, कुछ कम चार भाग, कुछ कम पाँच भाग और कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तिर्यञ्चगतिकी अपेक्षा तिर्यञ्चोंमें सामान्य तियंञ्च तथा काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोध, कषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषायवाले, लोभकषायवाले, मत्यज्ञाज्ञी, श्रुताज्ञानी, असंयतअचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जोवोंमें ओघके समान भंग है । पन्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पन्चेन्द्रियतिर्यञ्च पर्याप्त और पन्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी जीवोंमें दो शरीर, तीन शरीर और चार शरीरवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और अतीत कालकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पन्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य, अपर्याप्त, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तथा इन तीनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त पन्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवासे और तीन शरीरवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और अतीत कालको अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ____ मनुष्यगतिको अपेक्षा मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें दो शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है? वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालकी अपेक्षा सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तीन शरीरवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, लोकके For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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