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२३६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, १२८ अदीदकाले समयं पडि जदि वि असंखेज्जलोगमेत्ता सिझंति तो वि अदीदकालादो असंखज्जगुणा चेव । ण च एवं, अदीदकालादो सिद्धाणमसंखे०भागत्तवलंभादो। अदीदकालादो च सव्वजीवरासी अणंतगणो कुदो णव्वदे ? सोलसवदियअप्पाबहुगादो । तेण सिद्धं सिद्धेहितो एगणिगोदसरीरजीवाणमणंतगुणत्तं । तदो सव्वेण अदीदकालेण एगणिगोदसरीरजीवा वि ण सिज्झंति त्ति घेत्तव्वं । तत्थ णिगोदेसु जे द्विदा जीवा ते दुविहा-चउग्गइणिगोदा णिच्चणिगोदा चेदि । तत्थ चउग्गइणिगोदा णाम जे देव-णेरइय-तिरिक्ख-मणुस्सेसूप्पज्जियूण पुणो णिगोदेसु पविसिय अच्छंति ते चदुगइणिगोदा भण्णंति । तत्थ णिच्चणिगोदा णाम जे सव्वकालं णिगोदेसु चेव अच्छंति ते णिच्चणिगोदा णाम । अदीदकाले तसत्तं पत्तजीवा सुट्ठ जदि बहुआ होंति तो अदीदकालादो असंखेज्जगुणं चेव। तं जहा- अंतोमुत्तकालेण जदि पदरस्स असंखे०भागमेत्तजीवा तसेसु उप्पज्जमाणा लब्भंति तो अदीदकालम्हि केवडिए लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवद्विदाए अदीदकालादो असंखेज्जगुणो तसरासी होदि । तेण जागिज्जदि अदीदकाले तसभावमपत्तजीवाणमत्थितं सिज्झंतेसु जीवेसु संसारिजीवाणं वोच्छेदो च णत्थि त्ति ।
सब जीवराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है । परन्तु सिद्ध जीव अतीत कालके प्रत्येक समय में यदि असंख्यात लोकप्रमाण सिद्ध होवें तो भी अतीत कालसे असंख्यातगुण ही होंगे । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि सिद्ध जीव अतीत कालके असंख्यातवें भागप्रमाण ही उपलब्धि होते हैं।
शंका- सब जोवराशि अतीत कालसे अनन्तगुणी है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है? समाधान- सोलहपदिक अल्पबहुत्वसे जाना जाता है ।
इसलिये सिद्ध हुआ कि सिद्धोंसे एक निगोद शरीरके जीव अनन्तगुणे है । अतएव सभी अतीत कालकेद्वारा एक निगोदरारीरके जीव भी सिद्ध नहीं होते हैं यह ग्रहण करना चाहिए । उन निगोदोंमें जो जीव स्थित हैं वे दो प्रकारके हैं- चतुर्गति निगोद और नित्यनिगोद। उनमें से पहले चतुर्गतिनिगोद जीवोंका लक्षण कहते हैं- जो देव, नारकी, तिर्यच्च और मनुष्योंमें उत्पन्न होकर पुन: निगोदोंमें प्रवेश करके रहते हैं वे चतुर्गति निगोद जीव कहे जाते हैं । अब नित्यनिगोद जीवोंका लक्षण कहते हैं- जो सदा निगोदोंमेही रहते हैं वे नित्यनिगोद जीव है । अतीत कालमें त्रसपनेको प्राप्त हुए जीव यदि बहुत अधिक होते हैं तो अतीत कालसे असंख्यातगुण ही होते हैं। यथा अन्तर्महर्त कालके द्वारा यदि प्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव त्रसोंमें उत्पन्न होते हुए पाय जाते हैं तो अतीत कालमें कितने प्राप्त होंग, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देनेपर अतीत कालसे असंख्यातगुणी त्रसराशि होती है । इससे जाना जाता है कि अतीत काल में त्रसभावको नहीं प्राप्त हुए जीवोंका अस्तित्व है और जीवोंके सिद्ध होने पर भी संसारी जीवोंका विच्छेद वहीं होता।
ॐ अका०प्रत्योः 'अणंतगुणा कुदो' इति पाठः । 0 अप्रतौ 'गुणा तसरासी' इति पाठः । Jain Education International
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