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________________ बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा ( १६१ तं जहा - धुवसुण्णवग्गणाए चरिमवग्गणं सेडीए असंखेज्जविभागेण अंगलस्स असंखेज्जदिमागेण पलिदोमवस्स असंखेज्जदिभागेण जगपदरस्स असंखेज्जदिभागेण च गणिय पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेण खंडिय जं लद्धं तत्थेव पक्खित्ते सव्ववग्गणपमाणं होदि । पुणो धवसुण्णवग्गणाए वग्गणसलागाहि भागे हिदे जं भागं लद्धं तस्स पमाणमसंखेज्जाणि जगपदराणि । एदेण सव्ववग्गणपमाणे भागे हि धुवसुण्णवग्गणपमाणं होदि । तदो धुवसुण्णवग्गणाओ सव्ववग्गणाणमसंखेज्जदिभागो त्ति सिद्धं । बादरणिगोदवग्गणाओ सव्ववग्गणाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जदिभागो। कुदो ? बादरणिगोदवग्गणाहि सव्ववग्गणपमाणे भागे हिदे अंगुलस्स असंखेज्जदिभागण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण च गणिदजगपदरासंखेजदिभागस्स सादिरेयस्स उवलंभादो। वादरणिगोदवग्गणाए उरिमधवसुण्णवग्गणाओ सम्वेगसेडिवग्गणाणं केडिओ भागो ? असंखेज्जदिभागो। कुदो ? धुवसुण्णवग्गणाहि सव्ववग्गणापमाणे भागे हिदे पलिदोवमस्त असंखेज्जदिभागण गणिदजगपदरस्स असंखेज्जदिभागवलंभादो सुहमणिगोदवग्गणाओ सव्ववग्गणाणं केवडियो भागो ? असंखेज्जदि. भागो। कुदो ? सुहमणिगोदवग्गणाहि सव्ववग्गणापमाणे भागे हिदे पदरस्स असंखेज्जदिमागुवलंभादो । सुहमणिगोदवग्गणाए उवरिमधुवसुण्णदव्ववग्गणाओ सम्वग्गणाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जविभागो। कुदो ? सेसवग्गणाहि अन्तिम वर्गणाको जगश्रेणिके असंख्यातवें भागसे, अंगुलके असंख्यातवें भागसे, पल्यके असंख्यातवें भागसे और जगप्रतरके असंख्यात भागसे गुणित करके और पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे उसी में मिला देने पर सब वर्गणाओंका प्रमाण होता है । पुनः ध्रुवशून्यवर्गणाकी वर्गणाशलाकाओंका भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उसका प्रमाण असंख्यात जगप्रतर होता है । इसका सब वर्गणाओंके प्रमाण में भाग देनेपर ध्रुवशन्यवर्गणाका प्रमाण होता है । इसलिए ध्रुवशून्यवर्गणायें सब वर्गणाओंके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह सिद्ध होता है । बादरनिगोदवर्गणायें सब वर्गणाओंके कितने भागप्रमाण है? असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि, बादरनिगोदवर्गणाओंका सब वर्गणाओं में भाग देने पर अंगुलके असंख्यातवें भागसे और पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणित साधिक जगप्रतरका असख्यातवां भाग उपलब्ध होता है । बादरनिगोदवर्गणासे आगेकी ध्रुवशून्यवर्गणायें सब एकश्रेणिवर्गणाओंके कितने भाग प्रमाण है ? असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि, ध्रुवशून्यवर्गणाओंका सब वर्गणाओं के प्रमाणमें भाग देनेपर पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणित जगप्रतरका असख्यातवां भाग उपलब्ध होता है । सूक्ष्म निगोदवर्गणायें सब वर्गणाओंके कितने भागप्रमाण है? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, क्योंकि, सूक्ष्मनिगोदवर्गणाओंका सब वर्गणाओंके प्रमाणमें भाग देने पर जगप्रतरका असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है। सूक्ष्मनिगोदवर्गणासे आगेकी ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणायें सब वर्गणाओंके कितने भागप्रमाण है ? असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि, शेष वर्गणाओंका सब वर्गणाओंके द्रव्यमें भाग देने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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