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________________ बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा (१५९ तिस्से वग्गणाओ आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ता होदूण पुव्ववग्गणाहितो विसेसहीणाओ । एवं यव्वं जा उक्कसपत्तेयसरीरदव्ववग्गणे ति। उक्कस्सपत्तेयसरीरदव्ववग्गणाए वग्गणाओ सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अस्थि तो एक्को वा दो वा जा उक्कस्सेण वल्लरिदाहादिसु आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ सरिसधणियवग्गणाओ वट्टमाणकाले लन्भंति । अदीदकाले वि एक्के किस्से वग्गणाए सरिसधणियवग्गणाओ एत्तियाओ चेव होंति ; एत्तो अहियाणमेत्थ संभवाभावादो । जधा पत्तेयसरीरवग्गणा परू विदा तधा बादरणिगोदवग्गणा वि परूवेदव्वा । जल-थल-आगा. सादिसु सव्वजहणियाए सुहमणिगोदवग्गणाए वग्गणाओ सिया अस्थि सिया णस्थि । जदि अस्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभाग मेताओ सरिसणियसहमणिगोदवग्गणाओ वट्टमाणकाले होति । एबमभवसिद्धियपाओग्गपत्तेयसरीरवग्गणाणं उत्तरिहाणेण यवं जाव जवमझे ति । पुणो जवमझे वि आवलियाए असंखेज्जदिमागमेत्तसरिसधणियवग्गणाओ होति । पुणो पत्तेयसरीरवग्गणाविहाणेण उवरि यवं जाव उक्कस्ससुहमणिगोदवग्गणे त्ति । पत्तेयसरीर-बादर-सुहमणिगोदवग्गणासु वडिहाणीणं पमाणमेगा चेव वग्गणा; वड्ढीए अभावसंभवे एगवग्गणवड्ढीए विरोहाभावादो । अदीदकाले पत्तेयसरीर-बादर-सुहमणिगोदवग्गणाओ सरिसधणियाओ अणंताओ किण्ण लभंति? ण, एक्कम्हि काले भागप्रमाण वर्गणायें होकर भी पूर्ववर्गणासे बिशेष हीन है। इस प्रकार उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे बल्लरी दाह आदिमें आवलि के असंख्यातवें भागप्रमाण सदृश धनवाली वर्गणायें वर्तमान कालमें प्राप्त होती हैं। अतीत काल में भी एक एक वर्गणाकी सदृश धनवाली वर्गणायें इतनी ही होती हैं, क्योंकि, इनसे अधिक यहां पर सम्भव नहीं है। जिस प्रकार प्रत्येकशरीरवर्गणाका कथन किया है उस प्रकार बादरनिगोदवर्गणाका भी कथन करना चाहिए। जल, स्थल और आकाश आदिकमें सबसे जघन्य सूक्ष्म निगोदवर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो एक है, दो है, तीन हैं, इसप्रकार उन्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण सदृश धनवाली सूक्ष्म निगोदवर्गणायें वर्तमान कालमें हैं। इस प्रकार अभव्यप्रायोग्य प्रत्येकशरीरवर्गणाओंको उक्तविधिसे यवमध्यके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । पुन: यवमध्यमें भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण सदृश धनवालो वर्गणायें हैं । पुनः प्रत्येकशरीरवर्गणाकी विधिसे उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोद वर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । प्रत्येकशरीर, बादरनिगोद और सूक्ष्मनिगोद वर्गणाओंमें वृद्धि और हानिका प्रमाण एक ही वर्गणा है, क्योंकि, वृद्धिका अभाव सम्भव होने पर एक वृद्धि होने में कोई विरोध नहीं आता। शंका- अतीत कालमें प्रत्येकशरीर, बादरनिगोद और सूक्ष्मनिगोद वर्गणायें सदृश धनवाली अनन्त क्यों नहीं प्राप्त होती हैं ? .. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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