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________________ १४६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ११६ वि काले बादरणिगोदवग्गणदाणाणि सांतराणि चेव। कुदो ? असंखेज्जलोगगणिदअदीदकालमे ताणं चेव टागाणं तत्थ जीवसहिदाणमुवलं मादो। ण च एवं; सरिसधणियाणं पि वग्गणाणं संमवादो। जदि वि अदीदकालेण गणिदसधजीवरासिमेत्ताणि बादरणिगोदढाणाणि अदीदकाले उप्पण्णणि होंति तो सबढाणाणि आपूरिज्जति* ; अदीदकालादो वि सव्वजोवरासीदो वि विस्तासुवचयाणमेगपरमाणुविसयाणमणंतगुणत्तादो। पस्तमाणाए वि सांतराओ; अदीदकालं मोत्तण एत्थ सांतरणिरंतरपरू - वणाए भविस्सकाले दि संववहाराभावादो। भावे वा तस्स अदीदकाले अंतब्भावो होज्ज; अण्णहा जीवसहिदत्ताणववत्तीदो। ण च एगजीवेण एगा बादरणिगोदवग्गणा णिप्पज्जदि जेण सव्वबादरणिगोदेहि सव्वट्ठाणाणि तीदाणागदकालेसु आपूरिज्जंति ; जहणियाए बादरनिगोदवग्गणाए उक्स्स पतेयतरीरवग्गणादो हेडा पादप्यसंगादो । सेचीयादो पुण सम्वट्टाणाणि गिरंतराणि ।। सुहमणिगोदवग्गणाओ वट्टमाणकाले सांतराओ; असखेज्जलोगमेत सुहमणिगोदव. ग्गणाणं सव्वजोवेहि अणंतगणमेत्तसेचोयट्ठाणावरणसत्तीए अभावादो । अदीदकाले वि सेचीयट्ठाणाणि सांतराणि चेव; असंखेज्जलोगगुणिद अदीदकाल मेतसुहमणिगोदट्ठाणेहि अदीदकालुप्पण्णेहि सम्वट्ठाणावरणविरोहादो । भविस्सकाले वि सांतराणि निगोदवर्गणास्थान सान्तर ही है, क्योंकि, असंख्यात लोकगुणित अतीत कालप्रमाण स्थान ही अतीत कालमें जीवों सहित उपलब्ध होते हैं । परन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि, सदृश धनवाली भी वर्गणायें सम्भव हैं। यद्यपि अतीत कालसे गुणित सब जीवराशिप्रमाण बादरनिगोद स्थान अतीत काल में उत्पन्न होते हैं तो भी सब स्थान व्याप्त कर लिये जाते हैं, क्योंकि, अतीत कालसे भी और सब जीवराशिसे भी एक परमाणुविषयक विनसोपचय अनन्तगुणे होते हैं । पश्यमान कालमें भी सान्तर हैं, क्योंकि, अतीत कालको छोडकर यहां पर सान्तरनिरन्तर प्ररूपणाका भविष्य काल में भी व्यवहार नहीं होता। यदि होता है तो उसका अतोत काल में अन्तर्भाव हो जाता है, अन्यथा वे स्थान जीव सहित नहीं बन सकते । और एक जोव के द्वारा एक बादरनिगोदवर्गणा नहीं उत्पन्न होती है जिससे सब बादर निगोदों के द्वारा सब स्थान अतीत और अनागत काल में व्याप्त किये जावें, क्योंकि, ऐसा मानने पर जवन्य बादर निगोदवर्गणाके उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणासे नीचे होने का प्रसंग आता है। परन्तु सेचोयकी अपेक्षा सब स्थान निरन्तर हैं। सूक्ष्म निगोदवर्मणायें वर्तमान काल में सान्तर हैं, क्योंकि, असंख्यात लोकप्रमाण सूक्ष्म निगोदवर्गणाओंमें सब जीवोंसे अन्तगुणे से चीयस्थानोंके पूरा करनेकी शक्ति का अभाव है । अतीत कालमें भी सेचीयस्थान सान्तर ही हैं, क्योंकि, अतीत कालमें उत्पन्न हुए असंख्यात लोकगुगित अतीतकालप्रमाण सूक्ष्म निगोदस्थानोंके द्वारा सब स्थानोंके पूरा करने में विरोध है । बादरनिगोदवर्गणाके प्रसंगसे जो क्रम कह आये हैं उसी क्रमसे ये भविष्य कालमें भी सान्तर * आ० प्रतौ ' सबढाणाणमरिज्जति' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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