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________________ ५, ६, ९७. ) बंधणाणुयोगद्दारे महाखंधदव्ववग्गणा गंतूण धुवसुण्णदव्ववरगणा उक्कस्सा होदि । जहण्णादो उक्कस्सा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? जगपदरस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ जगसेडोओ । एवमेसा बावीसदिमा २२ वग्गणा परूविदा । धुवसुण्णवग्गणाणमुवरि महाखंधदव्ववग्गणा जामा ९७ ।। उक्कस्सधुवसुण्णदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते सव्वजहणिया महाखंधदव्ववग्गणा होदि । तदो रूवुत्तरकमेण सव्वजोवेहि अणंतगुणमेत्तमद्धाणं गंतूण उक्कस्सिया महाखंधदव्ववग्गणा होदि । जहण्णादो उक्कस्सा विसेसाहिया । केत्तियमेतो विसेसो ? सव्वजहण्णमहाखंधवग्गणाए पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण अवहिरिदाए जं भागं लद्धं तत्तियमेतो विसेसो । एत्थववज्जतीओ गाहाओ। तं जहा-- अणुसंखासंखेज्जा तधणंता वग्गणा अगेज्झाओ। आहार-तेज-भासा-मण-कम्मइय-धवक्खंधा ।। ७ ।। सांतरणिरंतरेदरसुण्णा पत्तेयदेह धवसण्णा । बादरणिगोदसुण्णा सुहुमा सुण्णा महाखंधो ।। ८ ।। अणु संखा संखगुणा परित्तवग्गणमसंखलोगगुणं । गुणगारो पंचण्णं अग्गहणाणं अभव्वणंतगुणो* ॥ ९ ॥ आहारतेजभासा मणेण कम्मेण वग्गणाण भवे ।। उक्कस्सस्स विसेसो अभव्वजीवेहि अधियो दु ॥ १० ॥ जाकर उत्कृष्ट ध्रुवशून्यद्रव्यनर्गणा होती है । यह जघन्यसे उत्कृष्ट असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो कि असंख्यात जगश्रेणिप्रमाण है। इस प्रकार यह बाईसवीं वर्गणा कही। धूवशन्यवर्गणाओंके ऊपर महास्कन्धद्रव्यवर्गणा होती है ॥ ९७ ॥ उत्कृष्ट ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणामें एक अङकके मिलाने पर सबसे जघन्य महास्कन्ध द्रव्यवर्गणा होती है। अनन्तर एक अधिकके क्रमसे सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्थान जाकर उत्कृष्ट महास्कन्धद्रव्य वर्गणा होती है । यह जघन्यसे उत्कृष्ट विशेष अधिक है । विशेषका प्रमाण कितना है ? सबसे जघन्य महास्कन्ध वर्गणामें पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना विशेषका प्रमाण है । यहां उपयोगी पड़ने वाली गाथायें । यथा--- अणुवर्गणा, संख्याताणुवर्गणा, असंख्याताणुवर्गणा, अनन्ताणुवर्गणा, आहारवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, तैजसवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, भाषावर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्राह्यवर्गणा, कार्मणवर्गणा, ध्रुवस्कन्धवर्गणा, सान्तरनिरन्तरवर्गणा, शून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरवर्गणा ध्रुवशून्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, शून्यवर्गणा, सूक्ष्म निगोदवर्गणा, शून्यवर्गणा और महास्कन्धवर्गणा ।। ७-८ ।। इनमें अणुवर्गणा एक है। संख्याताणुवर्गणा संख्यातगुणी है । असंख्याताणुवर्गणा असंख्यातलोकगुणी है । अनन्ताणुवर्गणासहित पाँच अग्राह्यवर्गणाओंका गुणकार अभव्योंसे अनन्तगुणा है ॥ ९ ॥ आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणामें अभव्योंसे अनन्तागुणे जीवोंका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना जघन्यसे उत्कृष्ट अ० प्रती वग्गणा असंखेज्जा' इति पाठ: *अ. का. प्रत्यो। 'अग्गहणाणामभवमणंतगणो। इति पाठः] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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