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________________ ५, ६, ९५.) बंधणाणुयोगद्दारे सुहुमणिगोददव्व वग्गणा ( ११३ सगजहण्णादो सगुक्कस्सवग्गणा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जविभागो। उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ पुलवियाओ। जहगसुहमणिगोदवग्गणाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत पुलवियाओ । तदो उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणादो हेटा सुहमणिगोदजहण्णवग्गणाए अंतरेण विणा होदव मिदि ? एत्थ परिहारो वच्चदे-बादरणिगोद उक्स्स वग्गणाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत पुलवियासु द्विवजीवेहितो सुहमणिगोदजहण्णवग्गणाए आवलियाए असं. खेज्जदिभागमेत्त पुलवियासु द्विदजीवा असंखेज्जगणा । कुदो ? बादरणिगोदवग्गणा' सरीरेहितो सुहमणिगोदवग्गणासरीराणमंगलस्स* असंखेज्जदिभागमेत्तगणगारुवलंभादो तत्थतणजीवेहितो एत्थतणजीवाणं गुणगारस्स अंगुलस्स असंखेज्जदिभाग-- मेतत्तुवलंभादो वा । ण च एत्थ बाहयमस्थि साहयंत पुण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेतगुणगारस्त अण्णहाणुववत्तीदो। एवमेसा वीसदिमा वग्गणा २० परूविदा। धुवसुण्णदव्ववग्गणाणमुवरि सुहमणिगोदवग्गणा णाम ॥ ९५ ॥ उक्कस्सधुवसुण्णदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते सव्वजहणिया सुहमणिगोददव्ववग्गणा णाम होदि । सा पुण जले वा थले वा आगासे वा दिस्सदि; उत्कृष्ट वर्गणा असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है? अडुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। शका-उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणामें जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियां होती हैं। जवन्य सूक्ष्पनिगोदवर्गणामें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियां होती हैं । इसलिए उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणासे नीचे सूक्ष्म निगोद जघन्य वर्गणा अन्तरके बिना होनी चाहिए? समाधान-यहां उक्त शंकाका परिहार करते हैं-- बादर निगोद उत्कृष्ट वर्गणाकी जगश्रेणिके असंख्यातवें भागमात्र पुलवियोंमें स्थित जीवोंसे सूक्ष्म निगोद जघन्य वर्गणाको आवलिके असंख्यातवें भागमात्र पुलवियोंमें स्थित जीव असंख्यातगुणे होते हैं, क्योंकि बादर निगोदवर्गणाके शरीरोंसे सक्षम निगोदवर्गणाके शरीरोंका गणकार अङ-लके असंख्यातवें भागप्रमाण पाया जाता है । अथवा वहां रहनेवाले जीवोंसे यहां रहनेवाले जीवोंका गुणकार अडुलके असंख्यातवें भागप्रमाण उपलब्ध होता है । और यहां इसका कोई बाधक भी नहीं है, किन्तु साधक ही है, अन्यथा अडुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार नहीं बन सकता है । इस प्रकार यह बीसवीं वर्गणा कही। ध्रुवशन्यद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर सूक्ष्मनिगोदवर्गणा होती है ।। ९५ ।। उत्कृष्ट ध्रुनशून्यवर्गणामे एक अंकके मिलाने पर सूक्ष्म निघोदद्रव्यवर्गणा होती है। वह जल में, स्थल में और आकाशमें सर्वत्र दिखलाई देती है, क्योंकि बादरनिगोदवर्गणाके समान * अ0 प्रतो 'अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो 1 उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणादो हेट्टा' इति पाठः । * अ० प्रती 'सेडीए असंखेज्जदिभागमेतपुलवियासु हुदजीवेहितो सुहुमणिगोदवग्गणासरीराणभंगुसलस्स इति पाठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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