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________________ ११०.) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५, ६, ९३. बाहिर दिसाए कम्मभूमिपडिभागम्मि मलयथहल्लयादिसु सरिसबादरणिगोदवग्गणाए होणाए अहियाए च उवलंभादो । पुणो एदीए सरिसवग्गणं घेतूण तत्थ मूलयथूहल्लयादिसु एगोरालियविस्सासुवचयपरमाणम्हि वडिदे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । दोसु वद्भिदेसु बिदियमपुणरुत्तट्टाणं होदि । एवमणंताणतेसु विस्सासुवचयपरमाणुपुग्गलेसु वडिदेसु पुत्वविहाणेण तदो एगोरालियपरमाण सविस्तासुवचय० वड्ढावेदवो । एवं ताव वड्ढावेदव्वं जाव विस्तासुवचयसहिदा ओरालियसरीरपरमाणू अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता त्ति । पुणो एदेणेव कमेण अणंताणतविस्सासुवचयसहिदा अभवसिद्धिएहि अणंतगणा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता तेजापरमाण वड्ढावेदव्वा । पुणो पुवविहाणेण कम्मइयसरीरपुंजम्हि सव्वजीवेहि अणंत गुणमेविस्तासुवचयसहिया अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता कम्मपरमाणू वड्ढावेदव्वा। पुणो पुत्वविहाणेण एगो जीवो पवेसियव्वो। पुणो तस्सेव ओरालिय-तेजा कम्मइयसरीराणि वड्ढावेदव्वाणि । एवं वड्ढाविज्जमाणे अणंताणतबादरणिगोदजीवेसु पविठेसु एगणिगोदसाधारणसरीरं पविसदि । असंखेज्जलोगमेत्तसरीरेसु पविट्ठेसु एगा पुलविया पविसदि । पुणो विस्सासुवचयसहियअभवसिद्धिएहि अणंतगण-सिद्धाणमणंतभागमेत्तोरालिय-तेजा-कम्मइयपरमाणुपोग्गलेस वढिदेस एगो जीवो पविसदि । एवमणंताणंतजीवेस पविठ्ठस एगं साधारणसरीरं पविसदि । एवमसंखेज्जलोगणिगोदलता आदिकमें सदृश बादरनिगोदवर्गणा हीन और अधिक उपलब्ध होती है । पुनः इसके सदृश वर्गणाको ग्रहण कर वहां मल, थवर और आर्द्रक आदिकमें एक औदारिक विस्रसोपचय परमाणु बढ़ने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। दो परमाणुओंके बढ़ने पर दूसरा अपुनरुक्त स्थान होता है। इस प्रकार अनन्तानन्त विस्रसोपचय परमाणु पुद्गलोंके बढ़ने पर पूर्व विधिसे अनन्तर एक औदारिक परमाणु विस्रसोपचयसहित बढ़ाना चाहिए । इस प्रकार विस्रसोपचयसहित औदारिकशरीर परमाणु अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र होने तक बढ़ाने चाहिए। पुनः इसी क्रमसे अनन्तानन्त विस्रसोपचयसहित अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र तेजसशरीर परमाणु बढ़ाने चाहिए । पुनः पूर्व विधिसे कार्म शरीर पुञ्ज में सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचयसहित अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र कर्मपरमाणु बढ़ाने चाहिए। इस प्रकार पूर्व विधिसे एक जीव प्रविष्ट कराना चाहिए । पुनः उसीके औदारिक, तैजस और कार्मणशरीर बढ़ाने चाहिए । इस प्रकार बढ़ाने पर अनन्तानन्त बादर निगोद जीवोंके प्रविष्ट होने पर एक निगोद साधारणशरीर प्रविष्ट होता है । असंख्यात लोकमात्र शरीरों के प्रविष्ट होने पर एक पुलवी प्रविष्ट होती है । पुनः विस्रसोपचय सहित अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र औदारिक, तैजस और कार्मणशरीर परमाणु पुद्गलोंके बढ़ाने पर एक जीव प्रविष्ट होता है । इस प्रकार अनन्तानन्त जीवोंके प्रविष्ट होने पर एक साधारणशरीर प्रविष्ट होता है । इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण निगोद ४ अ. का. प्रत्योः 'ओरालि यसरीपरमाणू अभवमिद्धिएहि अणतगुणा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता तेजापरमाग इति । । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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