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________________ ९४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६. ९३. जदि एक्कम्हि जीवे असंखेज्जाणं जीवाणं दव्वं संभवदि तो बादरणिगोदजहण्णवग्गणाए अणंतजीवाणं ओरालियसरीरदोपुंजेसु एगजीवओरालियसरीरदोजा णिच्छएण संभवंति त्ति पुणो किण्ण घेप्पदे ? ण । पुणो अण्णो जीवो पुवं वडिपदव्वेण ओरालियसरीरमब्भहियं काऊण पुणो तेजइयसरीरविस्तासुवचयपुंजे एगपरमाणुणा वड्डा. विदे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि ; अणंतरहेट्ठिमट्ठाणं पेक्खिय एत्थ परमाणुत्तरत्तुवलंभादो। पुणो पुग्विल्लट्ठाणम्हि बेतेजइयविस्सासुवचयपरमाणुपोग्गलेसु वडिदेसु अगमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । तिसु तेजइयविस्सासुवचयपरमाणुपोग्गलेसु वडिदेसु अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवमेगादिएगत्तरकमेण ताव वढावेदव्वं जाव सव्वजीवेहि अणंतगणमेत्ता तेजइयसरीरविस्सासुवचयपरमाणुड्डि त्ति ।। तदो अण्णो जीवो ओरालियसरीरदोपुंजेसु एगजीवोरालियसरीरदोपुंजे वड्डा. विय तेजासरीरमेगतेजापरमाणणा अब्भहियं काऊण एगतेजासरीरपरमाणुणा संबंधपाओग्गअणंतपरमाणू पुव्वं व बट्टाविदमेत्ते तेजइयविस्तासुवचएसु वड्डाविय खीणकसायचरिमसमए ट्ठिदो ताधे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । कारणं सुगमं । तदो अण्णो जीवो तेजासरीरमेगविस्तासुवचयपरमाणुणा अब्भहियं कादूच्छिदो ताधे अण्णम शंका-- यदि एक जीवमें असंख्यात जीवोंका द्रव्य सम्भव है तो बादर निगोद जघन्य वर्गणा सम्बन्धी अनन्त जीवोंके औदारिकशरीर सम्बन्धी दो पुञ्जोंमें एक जीव संबंधी औदारिकशरीरके दो पुञ्ज निश्चयसे सम्भव हैं ऐसा क्यों नहीं ग्रहण करते ? समाधान-- नहीं ग्रहण करते । पुनः एक अन्य जीव लो जो पहले बढाए हुए द्रव्य के साथ औदारिकशरीरको अधिक करके पुनः तैजसशरीरके विस्रसोपचय पुञ्जमें एक परमाणुको बढाकर स्थित है तब उसके अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है, क्योंकि, अनन्तर पूर्वके स्थानको देखते हुए यहां एक परमाणु अधिक उपलब्ध होता है । पुनः पूर्वोक्त स्थान में दो तैजसशरीर विस्रसोपचय परमाणु पुद्गलोंके बढाने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। तीन तैजसशरीर विस्रसोपचय परमाणु पुद्गलोंके बढाने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । इस प्रकार एकसे लेकर उत्तरोत्तर एक एक परमाणु तब तक बढाना चाहिए जब जाकर सब जीवोंसे अनन्तगुणे तैजसशरीर विस्रसोपचय परमाणुओंकी वृद्धि हो लेती है। ___अनन्तर एक अन्य जीव लो जो औदारिकशरीरके दो पुञ्जोंमें एक जीव सम्बन्धी औदारिकशरीरके दो पुञ्ज बढाकर, तैजसशरीरको एक तैजस परमाणुसे अधिक करके तथा एक तैजसशरीरके परमाणुसे सम्बन्ध रखने योग्य और पहलेके समान बढाये हुए अनन्त परमाणुप्रमाण तैजसशरीर विस्रसोपचयोंको बढाकर क्षीणकषायके अन्तिम समय में स्थित है तब उसके अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। कारण सुगम है। अनन्तर एक अन्य जीव लो जो तैजसशरीरको एक विस्रसोपचय परमाणु अधिक करके स्थित है उसके तब अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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