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४२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ४, १२. ___ कट्टकम्मप्पहुडि जाव भेंडकम्मे *त्ति ताव एदेहि सम्भावटवणा परूविदा। उवरिमेहि असब्भावट्ठवणा समुद्दिट्ठा। सब्भावासब्भावढवणाणं को विसेसो? बुद्धीए ठविज्जमाणं वण्णाकारादीहि जमणुहरइ दव्वं तस्स सम्भावसण्णा। दव्व-खेत-वेयणावेयणादिभेदेहि भिण्णाणं पडिणिभ-पडिणिभयाणं कधं सरिसत्तमिदि चे-ण, पाएण सरिसत्तवलंभादो। जमसरिसं दव्वं तमसम्भावढवणा । सव्वदव्वाणं सत्त-पमेयत्तादीहि सरिसत्तमुवलब्भदि त्ति चे-होदु णाम एदेहि सरिसतं, किंतु अप्पिदेहि वण्ण-कर-चरणादीहि सरिसत्ताभावं पेक्खिय असरिसत्तं उच्चदे । जहा फासणिक्खेवे कट्टकम्मादीणमत्थो उत्तो तहा एत्थ वि वत्तव्यो । एदेसु सब्भावासब्भावदव्वेसु ठवणाए बुद्धीए अमा एयत्तेण* जं ठविज्जदि तं ठवणकम्मं णाम । कधमेदस्स कम्मत्तं? ण, छक्कारयप्पयकम्मसद्दाहिहेयाए ठवणाए तदविरोहादो। कधं कम्मस्स अणियदसंठाणस्स सब्भावढवणा जुज्जदे ?
काष्ठकर्मसे लेकर भेंडकर्म तक जितने कर्म निर्दिष्ट किये हैं उनके द्वारा सद्भावस्थापना कही गई है। और आगे जितने अक्ष-वराटक आदि कहे गये हैं उनके द्वारा असद्भावस्थापना निर्दिष्ट की गई है।
शंका- सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापनामें क्या भेद है ?
समाधान- बुद्धि द्वारा स्थापित किया जानेवाला जो पदार्थ वर्ण और आकार आदिके द्वारा अन्य पदार्थका अनुकरण करता है उसकी सद्भावस्थापना संज्ञा है ।
शंका- द्रव्य, क्षेत्र, वेदना और अवेदना आदिके भेदसे भेदको प्राप्त हुए प्रति निभ और प्रतिनिभेय अर्थात् सदृश और सादृश्यके मूलभूत पदार्थों में सदृशता कैसे सम्भव है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, प्रायः कुछ बातोंमें इनमें सदृशता देखी जाती है । जो असदृश द्रव्य है वह असद्भावस्थापना है । शंका- सब द्रव्योंमें सत्त्व और प्रमेयत्व आदिके द्वारा समानता पाई जाती है ?
समाधान- द्रव्योंमें इन धर्मों की अपेक्षा समानता भले ही रहे, किन्तु विवक्षित वर्ण, हाथ और पैर आदिकी अपेक्षा समानता न देखकर असमानता कही जाती है।
जिस प्रकार स्पर्शनिक्षेपमें काष्ठकर्म आदिका अर्थ कहा है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये । इन तदाकार और अतदाकार द्रव्योंमें स्थापना बुद्धि द्वारा एकत्वके संकल्परूपसे जो स्थापित किया जाता है वह स्थापना कर्म है।
शंका- इसे कर्मपना कैसे प्राप्त है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, छह कारकरूप कर्म शब्दके वाच्यस्वरूप स्थापनामें कर्मपना मानने में कोई विरोध नहीं आता।
शका- अनियत संस्थानवाले कर्मकी सद्भावस्थापना कैसे बन सकती है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, कर्म संज्ञावाले मनुष्यमें सद्भावस्थापना पाई जाती है।
* अप्रतौ 'भिंडकम्मे ' इति पाठः । ॐ प्रतिषु 'पडिणिविपडिणिवेयाणं' इति पाठः । 7 तापतौ जमसरिसदव्वं' इति पाठः । -*- अप्रतौ 'अमा एत्तेण', आ-ताप्रत्योः 'अमायत्तेण' इति पाठः ।
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