________________
१२) छक्खंडागमे वेयणाखंड
( ५, ३, १२. कधं णिव्वुओ संतो अमुत्तत्तमल्लियइ? ण एस दोसो, जीवस्स मुत्तत्तणिबंधणकम्माभावे तज्जणिदमुत्तत्तस्स वि तत्थ अभावेण सिद्धाणममुत्तभावसिद्धीदो। जीवपोग्गलाणं कधंमादिबंधो? ण, पवाहसरूवेण अणादिबंधणबद्धाणं आदीए अभावादो। ण च कम्मवत्तिबंध पडि अणादित्तमत्थि, कम्मविणासाभावेण जीवस्स मरणाभावप्पसंगादो उवजीविदोसहाणं वाहिविणासाभावप्पसंगादो च। ण च पोग्गलाणं जीव-पोग्गलेहि चेव फासो, किंतु आगासादिदव्वेहि वि फासो अत्थि; णेगमणएण पच्चासत्तिदंसणादो । कधं दव्वस्स फाससण्णा? ण, स्पृश्यते अनेन स्पृशतीति वा स्पर्श-शब्दसिद्धेर्द्रव्यस्य स्पर्शत्वोपपत्तेः। सत्त-पमेयत्तादिणा सरिसाणं दव्वाणं छण्णं पि दव्वफासो णइगमणयमस्सिदूण अस्थि त्ति एगादिसंजोगेहि भंगपमाणुप्पत्ति वत्तइस्सामो।तं जहा-जीवदव्वं जीवदव्वेण पुस्सिज्जदि,अणंताणं णिगोदाणमेगणिगोदसरीरे समवेदाणमवट्ठाणुवलंभादो जीवभावेण एयत्तदंसणादो वा। १। पोग्गलदव्वं पोग्गलदव्वेण पुस्सिज्जदि, अणंताणं पोग्गलदव्वपरमाणूणं समवेदाणमुवलंभादो पोग्गलभावेण एयत्तदंसणादो वा।२। धम्मदध्वं धम्म
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जीवमें मूर्तत्वका कारण कर्म है, अतः कर्मका अभाव हो जानेपर तज्जनित मूर्तत्वका भी अभाव हो जाता और इसलिये सिद्ध जीवोंके अमूर्तपने की सिद्धि हो जाती है।
शंका- जीव और पुद्गलोंका आदि बन्ध कैसे है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि प्रवाहरूपसे जीव और पुद्गल अनादि बन्धन बद्ध हैं, अतः उसका आदि नहीं बनता। पर इसका अर्थ यह नहीं कि कर्मव्यक्तिरूप बन्धकी अपेक्षा वह अनादि है, क्योंकि, ऐसा माननेपर कर्मका कभी नाश नहीं होनेसे जीवके मरणके अभावका प्रसंग आता है और उपजीवी औषधियोंके निमित्तसे व्याधिविनाशके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है ।
पुद्गलोंका जीव और पूद्गलोंके साथ ही स्पर्श नहीं पाया जाता, किन्तु आकाश आदि द्रव्यों के साथ भो उनका स्पर्श पाया जाता है; क्योंकि नंगम नयकी अपेक्षा इनकी प्रत्यासत्ति देखी जाती है।
शंका- द्रव्यकी स्पर्श संज्ञा कैसे है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि जिसके द्वारा स्पर्श किया जाता है या जो स्पर्श करता है' इस व्युत्पत्तिके अनुसार स्पर्श शब्दकी सिद्धि होनेसे द्रव्यकी स्पर्श संज्ञा बन जाती है।
सत्त्व और प्रमेयत्व आदिको अपेक्षा सदश ऐसे छहों द्रव्योंके भो द्रव्यस्पर्श नैगम नयकी अपेक्षा पाया जाता है, इसलिये एक आदि संयोगोंकी अपेक्षा जितने भंग उत्पन्न होते हैं उन्हें बतलाते हैं। यथा-एक जोव दसरे जीव द्रव्य के द्वारा स्पर्शको प्राप्त होता है क्योंकि, एक निगोदशरीरमें समवेत अनन्त निगोद जोवोंका अवस्थान पाया जाता है; अथवा जीवरूपसे उन सबमें एकत्व देखा जाता है । १। एक पुद्गल द्रव्य दूसरे पुद्गल द्रव्यके द्वारा स्पर्शको प्राप्त होता है, क्योंकि, समवेत अनन्त पुद्गल परमाणु पाये जाते हैं, अथवा पुद्गल रूपसे
AB ताप्रतौ ‘णेगमगयपच्चासत्तिदंसणादो' इति पाठः । 0 ताप्रतौ 'स्पृश्यतीति' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.