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१० ) छ खंडागमे वेयणाखंड
( ५, ३, १०. घडिदाओ पडिमाओ लेप्पकम्माणि णाम। सिलामयपव्वदेहितो अभेदेणःघडिदपडिमाओ लेणकम्माणि णाम । पुधभूदसिलासु घडिदपडिमाओ सेलकम्माणि णाम । गोपुराणं सिहरेहितो अभेदेण इट्ठ-पत्थरादीहि चिदपडिमाओ गिहकम्माणि णाम। कुडेहितो अभेदेण कदएहि® णिप्पाइयपडिमाओ भित्तिकम्माणि णाम । हत्थिदंतुक्किण्णपडिमाओ दंतकम्माणि णाम। भेंडमोएण घडिदपडिमाओ भेंडकम्माणि णाम। आदिसद्देण कंस-तंब-रुप्पसुवण्णादीहि सेक्कारेहि भरिदपडिमाओ वि घेत्तव्वाओ। एवं सब्भावट्ठवणाए आधारपरूवणा कदा। जूअट्टवणे जयपराजयणिमित्तकवडुओ खुल्लो पासओ वा अक्खो णाम। जो अण्णो कवडुओ सो वराडओणाम। एवमेदेहि दोहि वि पदेहि असब्भावढवणविसओ दरिसिदोहोदि। पुग्विल्लेहि च पदेहि सम्भावट्ठवणविसओ णिदरिसिदो। 'जेच अमी अण्णे एवमादिया' एदस्स वयणस्स उभयत्थ वि संबंधो कायव्वो अवुत्तसगहट्टं। ठवणा त्ति वुत्ते मदिविसेसधारणाणाणं घेत्तव्वं । एदेसु पुव्वुत्तेसु सब्भावासब्भावभेएण दुब्भावमावण्णेसु ट्ठवणाए बुद्धीए अमा एयत्तेण जं ठविज्जदि फासे त्ति सो सम्वो ठवणफासो णाम:
मिट्टी, खडिया और बालू आदिके लेपसे जो प्रतिमाएं बनाई जाती हैं उन्हें लेप्यकर्म कहते हैं। शिलास्वरूप पर्वतोंसे अभिन्न जो प्रतिमाएं बनाई जाती हैं उन्हें लयनकर्म कहते हैं। पृथक पडी हुई शिलाओंमें जो प्रतिमाएं बनाई जाती हैं उन्हे शैलकर्म कहते हैं । गोपुरोंके शिखरोंसे अभिन्न ईंट और पत्थर आदिके द्वारा जो प्रतिमाएं चिनी जाती हैं उन्हें गृहकर्म कहते हैं । भित्तिसे अभिन्न तणोंसे जो प्रतिमाएं बनाई जाती है उन्हें भित्तिकर्म कहते हैं। हाथीके दांत में जो प्रतिमाएं उत्कीर्ण की जाती हैं उन्हें दन्तकर्म कहते हैं। तथा भेंड अर्थात् से घडी गई प्रतिमाओंको भेंडकर्म कहते हैं। आदि शब्दसे कांसा तांबा, चांदी और सुवर्ण आदि द्वारा साँचे में ढाली गई प्रतिमाएं भी ग्रहण करनी चाहिये। इस प्रकार सद्भावस्थापनाके आधारका कथन किया। द्यूतकर्मकी स्थापनामें जो जय-पराजयकी निमित्तभूत छोटी कौडियां और पांसे होते हैं उन्हें अक्ष कहते हैं और इनके अतिरिक्त कौडियोंको वराटक कहते हैं। इस प्रकार इन दोनों पदोंके द्वारा असद्भावस्थापनाका विषय दिखलाया है और पूर्वोक्त पदोंके द्वारा सद्भावस्थापनाका विषय दिखलाया है। सूत्र में 'जे च अमी अण्णे एवमादिया यह जो वचन आया है सो अनुक्तका संग्रह करने के लिये इसका उभयत्र ही सम्बन्ध करना चाहिये । 'स्थापना' ऐसा कहनेपर उससे मतिविशेषरूप धारणाज्ञान ग्रहण करना चाहिये । इन पूर्वोक्त सद्भाव और असद्भावके भेदसे दो प्रकारके पदार्थों में स्थापना अर्थात् बुद्धिसे अमा अर्थात् अभेदरूपसे जो स्पर्श ऐसी स्थापना होती है वह सब स्थापनास्पर्श है।
शंका- यहां स्पृश्य-स्पर्शक भाव कैसे हो सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि बुद्धिसे एकत्वको प्राप्त हुए उनमें स्पृश्य-स्पर्शक भावके होने में कोई
® ताप्रतौ 'कद (ड) एहि' इति पाठः । * ताप्रतौ 'गदा' इति पाठः
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