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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५,५.४८.
सिमेय तुवलंभादो पदसुदणाणस्स जमावरणं तं पदसुदणाणावरणीयं नाम पंचममावरणं ५ । पदसमासणाणस्स जमावारयं कम्मं तं पदसमासणाणावरणीयं छट्ठ ६ । जदि वि एदं वत्तिदुवारेण संखेज्जवियप्पं तो वि तण्ण गहिदं, पज्जएहि अत्थित्ताभावादो । एक्कं चेवे त्ति गहिदं, दव्वट्टियत्तादो । संघादणाणस्स जमावरयं कम्मं तं संघादणाणावरणीयं सत्तमं ७ | संघादसमासणाणस्स जमावारयं कम्मं तं संघादसमासावरणीयट्टमं ८ । जदि वि एवं संखेज्जवियप्पं तो वि जादिदुवारेण एवकं चेवेत्ति गहिदं । पडिवत्तिसुदणाणस्स जमावारयं कम्भं तं पडिवत्तिआवरणीयं जवमं ९ । पडिवत्तिसमास सुदणाणस्स जमावारयं कम्मं तं पडिवत्तिसमासावरणीयं दसमं १० । अणुयोगसुदणाणस्स जमावारयं कम्मं मतणियोगावरणीयमेक्कारसमं ११ । अणुयोगसमाससुदणाणस्स संखेज्जवियप्पस्स जादिदुवारेण एयत्तमावण्णस्स जमावरणं तमणुयोगसमासावरणीयं बारसमं १२ । पाहुडपाहुडसुदणाणस्स जमावरणं तं पाहुडपाहुडणाणावरणीयं तेरसमं १३ । पाहुडपाहुडसमाससुदणाणस्स वत्तिदुवारेण संखेज्जवियप्पेसु संतेसु वि जादिदुवारेण एयत्तमावण्णस्स जमावरयं कम्मं तं पाहुडपाहुउसमासावरणीयं चोदसमं १४ । पाहुडसुदणाणस्स जमावारयं कम्मं तं पाहुडावरणीय
किये गये हैं; क्योंकि, जातिकी अपेक्षा उनमें एकत्व उपलब्ध होता है । पद श्रुतज्ञानका जो आवरण कर्म है वह पदश्रुतज्ञानावरणीय नामका पांचवां आवरण ५ । पदसमास ज्ञानका जो आवारक कर्म है वह पदसमासज्ञानावरणीय नामका छठा कर्म है ६ । यद्यपि यह व्यतिकीं अपेक्षा संख्यात प्रकारका है तो भी उन भेदोंका ग्रहण नहीं किया है; क्योंकि, यहां पर्यायों के ग्रहणकी विवक्षा नहीं है। एक ही है, ऐसा मानकर उसका ग्रहण किया है. क्योंकि, यहां द्रव्यार्थिक नयकी मुख्यता है । संघातज्ञानका जो आवारक कर्म है वह संघात ज्ञानावरणीय नामका सातवां आवरण है ७ । संघातसमास ज्ञानका जो आवारक कर्म है वह संघातसमासज्ञानावरणीय नामका आठवां आवरण है ८ । यद्यपि यह संख्यात प्रकारका है तो भी जातिकी अपेक्षा एक ही है, ऐसा यहां ग्रहण किया है । प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्रतिपत्तिआवरणीय नामका नौंवा आवरण है ९ । प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म हैं वह प्रतिपत्तिसमासावरणीय नामका दसवां आवरण है १० । अनुयोग श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह अनुयोगावरणीय नामका ग्यारहवां आवरण है ११ । जो व्यक्तिशः संख्यात प्रकारका है, किन्तु जातिकी अपेक्षा एक प्रकारका है, ऐसे अनुयोगसमास श्रुतज्ञानका जो आवरण कर्म है वह अनुयोगसमासावरणीय नामका बारहवां आवरण है १२ । प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्राभृतप्राभूतावरणीय नामका तेरहवां आवरण है १३ । व्यतिकी अपेक्षा संख्यात भेदोंके होनेपर भी जो जातिकी अपेक्षा एक प्रकारका है ऐसे प्राभृतप्राभृतसमास श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्राभृतप्राभृतसमासावरणीय नामका चौदहवां आवरण कर्म है १४ । प्राभृत श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्राभृतावरणीय नामका पन्द्रहवां कर्म है १५ । अ आ-काप्रतिषु ' जमावारयं इति पाठ: 1
तातो' आवरणं इति पाठ: [
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