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________________ २७८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५,५.४८. सिमेय तुवलंभादो पदसुदणाणस्स जमावरणं तं पदसुदणाणावरणीयं नाम पंचममावरणं ५ । पदसमासणाणस्स जमावारयं कम्मं तं पदसमासणाणावरणीयं छट्ठ ६ । जदि वि एदं वत्तिदुवारेण संखेज्जवियप्पं तो वि तण्ण गहिदं, पज्जएहि अत्थित्ताभावादो । एक्कं चेवे त्ति गहिदं, दव्वट्टियत्तादो । संघादणाणस्स जमावरयं कम्मं तं संघादणाणावरणीयं सत्तमं ७ | संघादसमासणाणस्स जमावारयं कम्मं तं संघादसमासावरणीयट्टमं ८ । जदि वि एवं संखेज्जवियप्पं तो वि जादिदुवारेण एवकं चेवेत्ति गहिदं । पडिवत्तिसुदणाणस्स जमावारयं कम्भं तं पडिवत्तिआवरणीयं जवमं ९ । पडिवत्तिसमास सुदणाणस्स जमावारयं कम्मं तं पडिवत्तिसमासावरणीयं दसमं १० । अणुयोगसुदणाणस्स जमावारयं कम्मं मतणियोगावरणीयमेक्कारसमं ११ । अणुयोगसमाससुदणाणस्स संखेज्जवियप्पस्स जादिदुवारेण एयत्तमावण्णस्स जमावरणं तमणुयोगसमासावरणीयं बारसमं १२ । पाहुडपाहुडसुदणाणस्स जमावरणं तं पाहुडपाहुडणाणावरणीयं तेरसमं १३ । पाहुडपाहुडसमाससुदणाणस्स वत्तिदुवारेण संखेज्जवियप्पेसु संतेसु वि जादिदुवारेण एयत्तमावण्णस्स जमावरयं कम्मं तं पाहुडपाहुउसमासावरणीयं चोदसमं १४ । पाहुडसुदणाणस्स जमावारयं कम्मं तं पाहुडावरणीय किये गये हैं; क्योंकि, जातिकी अपेक्षा उनमें एकत्व उपलब्ध होता है । पद श्रुतज्ञानका जो आवरण कर्म है वह पदश्रुतज्ञानावरणीय नामका पांचवां आवरण ५ । पदसमास ज्ञानका जो आवारक कर्म है वह पदसमासज्ञानावरणीय नामका छठा कर्म है ६ । यद्यपि यह व्यतिकीं अपेक्षा संख्यात प्रकारका है तो भी उन भेदोंका ग्रहण नहीं किया है; क्योंकि, यहां पर्यायों के ग्रहणकी विवक्षा नहीं है। एक ही है, ऐसा मानकर उसका ग्रहण किया है. क्योंकि, यहां द्रव्यार्थिक नयकी मुख्यता है । संघातज्ञानका जो आवारक कर्म है वह संघात ज्ञानावरणीय नामका सातवां आवरण है ७ । संघातसमास ज्ञानका जो आवारक कर्म है वह संघातसमासज्ञानावरणीय नामका आठवां आवरण है ८ । यद्यपि यह संख्यात प्रकारका है तो भी जातिकी अपेक्षा एक ही है, ऐसा यहां ग्रहण किया है । प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्रतिपत्तिआवरणीय नामका नौंवा आवरण है ९ । प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म हैं वह प्रतिपत्तिसमासावरणीय नामका दसवां आवरण है १० । अनुयोग श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह अनुयोगावरणीय नामका ग्यारहवां आवरण है ११ । जो व्यक्तिशः संख्यात प्रकारका है, किन्तु जातिकी अपेक्षा एक प्रकारका है, ऐसे अनुयोगसमास श्रुतज्ञानका जो आवरण कर्म है वह अनुयोगसमासावरणीय नामका बारहवां आवरण है १२ । प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्राभृतप्राभूतावरणीय नामका तेरहवां आवरण है १३ । व्यतिकी अपेक्षा संख्यात भेदोंके होनेपर भी जो जातिकी अपेक्षा एक प्रकारका है ऐसे प्राभृतप्राभृतसमास श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्राभृतप्राभृतसमासावरणीय नामका चौदहवां आवरण कर्म है १४ । प्राभृत श्रुतज्ञानका जो आवारक कर्म है वह प्राभृतावरणीय नामका पन्द्रहवां कर्म है १५ । अ आ-काप्रतिषु ' जमावारयं इति पाठ: 1 तातो' आवरणं इति पाठ: [ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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