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________________ ५४, ३१.) पर्या अणुओगद्दारे णयविभासणदा ( १८९ केत्तियमेत्तण? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तघणलोगेहि । समोदाणकम्मपदेसदा गुना | अणुद्दिादि जात्र सव्वट्टसिद्धि त्ति सव्वत्थोवाओ किरियाकम्प-पओअकम्मसमोदाणकम्म* दव्वटुदाओ तिणि वि सरिसाओ। किरियाकम्म - पओअकस्मपदेसओसिरिसाओ असंखेज्जगुणाओ को गुणगारो ? घणलोगो । समोदाणकम्मपदेसदा अनंतगुणा । तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा किरियाकम्मदव्वद्वदा । तस्सेव पदेसदा असंखेज्जगुणा । आधाकम्मदव्वद्वदा अनंतगुणा । तस्सेव पदेसट्टदा अनंतगुणा । पओ अकम्म समोदाणकम्मदव्वद्वदाओ दो वि सरिसाओ अनंतगुणाओ । पओअकस्मपदेसट्ठा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? घणलोगो । समोदाणकम्मपदेसदा अनंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागस्स असंखेज्जदिभागो एवमसंजद किण्ण-णील- काउलेस्सियाणं पि वत्तव्वं । ( सव्वएइंदिय-वणप्फदिकाइयदो-अण्णाणि मिच्छाइट्टि असण्ण त्ति एवं चेव वत्तन्वं । णवरि सव्वत्थोवा आधाक भागप्रमाण घनलोकोंकी जितनी प्रदेशसंख्या है उतनी अधिक प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के और समवदानकर्म इन तीनोंकी द्रव्यार्थता समान होकर और प्रयोगकर्म इन दोनोंकी प्रदेशार्थता समान होकर घनलोक गुणकार है । इससे समवदानकर्म की प्रदेशार्थता है । इससे समवधानकर्म की देवोंमें क्रियाकर्म, प्रयोगकर्म, सबसे स्तोक है । इससे क्रियाकर्म असंख्यातगुणी है गुणकार क्या है ? अनन्तगुणी हैं । तियंचगति में तिर्यंचों में क्रियाकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे उसीकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे अधः कर्म की द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । इससे उसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इससे प्रयोगकर्म और समवदानकर्म इन दोनोंकी द्रव्यार्थता समान होकर अनन्तहै। इससे प्रयोगकर्म की प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है? घनलोक गुणकार है । इससे समवदानकर्म की प्रदेशार्थता अनन्तगुणी हैं। गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धों अनन्तवें भागका असंख्यातवा भाग गुणकार है । इसी प्रकार असंयत, कृष्ण नील और कापोत लेश्यावालोंके भी कहना चाहिये । ( तथा इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक. दो अज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेता है कि इनके अधः कर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है, ऐसा कहना चाहिये । इनके क्रियाकर्म नहीं है पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिक में क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे प्रयोगकर्म और काप्रत्थो इति पाठ: 1 ताप्रतौ सरिसाओ किरियाकम्मसभोदाणकम्म- ' 1 Jain Education International ताप्रती 1 किरिया इति पाठः । किरियाकम्म ( पओअकम्म- ) समोदाणकम्म-' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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