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________________ १८२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. समोदाणकम्म-किरियाकम्मदव्वदाओ तिणि वि सरिसाओ असंखेज्जगणाओ। आघाकम्मदव्वट्ठवा अणंतगणा। उसमसम्माइट्ठीसु सम्वत्थोवा । इरियावहकम्मदव्वदा । तवोकम्मदवढदा संखेज्जगुणा किरियाकम्मदवढदा असंखेज्जगुगार। पओअकम्म-समोदाण कम्मदव्वटुवाओ दो विसरिसाओ विसेसाहियाओ। आधाकम्म च्वट्ठदा अणंतगणा । सणियाणुवादेण सण्णीणं मणजोगिभंगो*। णेव सण्णी व असण्णीसु सम्वत्थोवा पओअकम्मइरियावहकम्मदव्वटुदाओ। तवोकम्मरसमोदाणकम्मदवट्ठदाओ विसेसाहियाओ । आधाकम्मदव्वठ्दा अणंतगुणा । आहाराणुवादेण आहारएसु सव्वत्थोवा इरियावहकम्मदग्वट्ठदा । तवोकम्मदवट्ठवा संखेज्जगुणा । किरियाकम्मदवढदा असंखेज्जगुणा । आधाकम्मदव्वट्ठदा अणंतगुणा । पओअकम्मसमोदाणकम्मदव्वदाओ दो वि सरिसाओ अणंतगुणाओ । एवं दवटुदप्पाबहुअं समत्तं। पदेसट्टदप्पाबहुगाणगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण ध । ओघेण सव्वत्थोवा तओकम्मपदेसट्टदा । किरियाकम्मपदेसटुदा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो। आधाकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा। को गणगारो? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिभागो। इरियावहकम्महै। इससे प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थतायें तीनों ही समान होकर असंख्यातगुणी हैं । इनसे अध:कर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे तपःकर्मकी द्रव्यार्थता सख्यातगुणी है । इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता असंख्यातगुणी है । इससे प्रयोगकर्म और समवधानकर्मकी द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर विशेष अधिक हैं । इनसे अध:कर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । संज्ञीमार्गणाके अनुवादसे संज्ञी जीवोंका कथन मनोयोगियों के समान है । नैव संज्ञी नैव असंज्ञी जीवोंमें प्रयोगकर्म और ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे तपःकर्म और समवधानकर्मकी द्रव्यार्थतायें विशेष अधिक हैं । इनसे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे तपःकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है। इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता असंख्यातगुणी है । इससे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । इससे प्रयोगकर्म और समवधानकर्मकी द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर अनन्तगुणी है। इस प्रकार द्रव्यार्थताअल्पबहुत्व समाप्त हुआ। प्रदेशार्थताअल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे तपःकर्मकी प्रदेशार्थता सबसे स्तोक है । इससे क्रियाकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है। गुणकरा क्या है ? पल्योपमके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भगा गुणकार है। इससे अध:कर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्वोंका अनन्तवां भाग गुणकार है । इससे ईर्यापथकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इससे प्रयोगकर्मकी मा-का-ताप्रतिषु 'संखेज्जगुणा इति पाठ:1 * आ-का-ताप्रतिषु ' सण्णीणमजोगिभंगो' इति पाठ:18काप्रती ' -इरियावहकम्मदघट्दा संखेज्जगणा तवोकम्म-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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