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________________ ५, ४, ३१ ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं कालपरूवणा ( ११७ पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहणं । उक्कस्सेण अंतोमहत्तं । बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं तेसिं चेव पज्जताणं च पओ अकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? जाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि। बेइंदियतेइंदिय-चरिदिय--अपज्जताणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहणं। उक्कस्सेण असोदि-सटि-ताल अंतोमहुतं । पंचिदिय-चिदियपज्जत्ताणं पओअकम्म-समो. दाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण. खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुत्तं । उक्कस्सेण सागरोवमसहस्सं पुव्वकोडिपुधत्तेणउभहियं सागरोवमसदपुधत्तं । आधाकम्म-इरियावहकम्म-तवोकम्म-किरियाकम्माणमोघभंगो। पंचिदियअपज्जत्ताणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पड़च्च जहण्णण खुद्दाभवग्गहणं । उक्कस्सेण चउवीस अंतोमुहुत्ता। कायाणुवादेण पुढविकाइय-आउकाइय-तेउकाइय-वाउकाइय-सुहमपुढविकाइय-सुहुम. आउकाइय-सुहुमतेउकाइय-सुहुमवाउकाइय-सुहुमवणप्फदिकाइय-सुहमणिगोदाणं पओजीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंके तथा उन्हीं के पर्याप्त जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण और अन्तर्महर्त है । उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अस्सी, साठ और चालीस अन्तर्महर्तप्रमाण है। पंचेन्द्रिय और पचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण और अन्तर्मुहूर्त है। तथा उत्कृष्ट काल तथा पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक हजार सागर और सौ सागर पृथक्त्व प्रमाण है । अध:कर्म, ईपिथकर्म, तपःकर्म और क्रियाकर्मका काल ओघके समान है। पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण है। और उत्कृष्ट काल चौबीस अन्तर्मुहुर्त है। कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक. सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म निगोदजीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है। नाना जीवोंकी *ताप्रती · अतोमुहुत्ता ' इति पाठः । . आ-का-ताप्रतिष ‘णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण ' इति पाठः ॐ अ-आप्रत्यो: 'अंतोमुहुत्तो, काप्रती 'अंतोमुहुत्तं 'इति पाठः1 ताप्रती ' वाउकाइय-तेउकाइय'इति पाठः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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