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________________ जीवादि सात पदार्थोंका निर्देश जीवादि सात पदार्थ क्यों कहे इसका कारण खवादिकका जीव और जीवमें अन्तर्भाव हो जानेपर भी उनके पृथ ग्रहणका प्रयोजन जीव आदि शब्दोंका निर्वचन जीवादि पदार्थों का लक्षण निर्देश सूत्रमें जीवादि पदों के यथाक्रम रखने की सार्थकता 'तत्त्व' शब्दके साथ जीवादि पदोंके समानाधिकरणका विचार जीवादि तत्वोंके संव्यवहारके लिए निक्षेष प्रक्रियाका निरूपण नाम आदि निक्षेपका लक्षण नाम और स्थापनाके एकत्वकी श्राशंका का परिहार द्रव्य और भावकी एकताकी आशंका का परिहार नाम श्रादि पदों के पौर्वापर्यका निरूपण एक शब्दार्थके नाम श्रादि चार निक्षेप मानने में श्रानेवाले दोषका निराकरण [ मूल पृष्ठ हिन्दी पृष्ठ २४ २७६ Jain Education International २४ २८० २५ २५ २८० २६ २७ २८१ २७ २८२ .३८ २८ २६ २६ ३० ३० द्रव्यार्थिक तथा पर्यायार्थिकमें नाम श्रादि निक्षेपोंके श्रन्तर्भाव हो जानेके कारण उनके पुनः उल्लेखसे होनेवाले पुनरुक्ति दोषका निराकरण सूत्र में श्राये हुए 'तत्' शब्दकी सफलता ३३ सवाधिगम के उपाय ३२ ३३ सूत्र में 'प्रमाण' शब्दके पहले रखनेका ३८ २८० सूत्र में श्राये हुए 'सत्' श्रादि पदोंका पौर्वापर्यविचार व स्वरूपनिर्देश ४१ २८१ निर्देश आदि पदोंसे सत् यादि पदों को भिन्न रखनेकी सार्थकता सम्यग्ज्ञानके पाँच भेद सूत्रमें आये हुए मति श्रादि शब्दोंकी व्युत्पति अन्य मतों में ज्ञान शब्दकी करण आदि साधनों में सिद्धि नहीं होती इसका प्रतिपादन मति श्रादि पदके पौर्वापर्य क्रमका निरूपण २८२ २८२ २८२ २८३ २८३ २८३ २८४ २८४ २८४ कारण ३३ अधिगम हेतु भेद ३३ सप्तभंगीका लक्षण तथा उसका स्वरूप ३३. अनेकान्त विधिप्रतिषेधकल्पनाकी सिद्धि ३५ अनेकान्तका निरूपण न तो छल है और न संशयका हेतु है इस बातका समर्थन ३६ २८७ जीवादि पदार्थोके अधिगमके अन्य उपाय ३८ २८८ निर्देश आदि पदके क्रम-निर्देशका कारण ब उनका स्वरूप निर्देश २=४ २८५ २८५ २८७ G ] जीव पदार्थ में दो नयका अवलम्बन लेकर निर्देश श्रादिकी योजना ३८ २८८ जी आदि निर्देश श्रादिकी योजना ३६ २८६ जीवादिके अधिगम के अन्य उपाय 'सत्' शब्दका अर्थ २९१ ४१ ४१ २६१ मति और श्रुतके एकत्वका निराकरण श्रुतज्ञान के स्वरूपका निर्देश व शंका समाधान मति आदि ज्ञान दो प्रमाणों में विभक्त हैं इस बातका निर्देश 'प्रमाण' शब्दकी निरुक्ति व उसका स्वरूप निर्दश प्रमाणके फलका निर्देश ज्ञाता और प्रमाण में सर्वथा भेद है इस मूल पृष्ठ हिन्दी पृष्ठ प्रत्यक्षका लक्षण अन्य द्वारा प्रत्यक्ष तथा परोक्षके माने ये लक्षणोंका निराकरण मतिज्ञानके नामान्तर मति श्रादि नामान्तरोंका मति शब्द के साथ अभेदार्थ कथन तथा उस विषय में शंका-समाधान मति ज्ञानकी उत्पत्तिके कारण २८८ | इन्द्रिय और श्रनिन्द्रिय शब्दका अर्थ For Private & Personal Use Only ४२ २९२ ४४ २९३ ४४ २६३ ४५ ४७ ४८ ४८ २६१ ४९ ४६ ५० २६४ २६६ २६७ ५० मतका खण्डन सन्निकर्ष प्रमाण है इस मतका खण्डन ५१ मति और श्रुतमें परोक्षत्वकी व्यवस्था द्य शब्दका अर्थ ५२ ५२ ३०० ३०० परोक्ष शब्दका अर्थ और उसकी प्रमाणता ५२ अवधि आदि ज्ञान प्रत्यक्ष हैं ५३ ३०० ५३ ३०० २६७ २९७ २६७ २६८ २६८ २६६ ३०० ५३ ३०१ ५७ ३०४ ३०४ ५७ ५९ ३०५ ५६ ३०५ www.jainelibrary.org
SR No.001811
Book TitleTattvarthvarttikam Part 1
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size11 MB
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