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________________ ४८ शेठ के प्रेम भाव से इस शेठ के मन में भी नया भाव, नया प्रकाश जागृत हुआ, सुषुप्त श्रद्धा जाग उठी, इनमें भी उदारता गुण प्रकट हुआ। दस वर्ष बीत गये, एक बार शेठने अखबार में पढ़ा कि जिन्होंने उनकी मदद की थी, वही शेठ कठिनाई में आ धिरे हैं, पैसे मांगने वाले पैसे मांग रहे है, मगर उनके पास देने के लिए पैसे नहीं है। अब वो शेठ कंजूस नहीं रहे, उनमें उदारता के द्वार खुल चुके थे। एक पैसे का भी फालतू पेट्रोल नहीं जलाने वाले शेठ सत्तर माईल दूर बैठे उस शेठ की मदद करने निकल पड़े। ___ वहाँ जाकर देखा तो जिस शेठने हमेशा दूसरों की मदद की है, वे आज गमगीन बैठे हैं, उनकी प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है। हार कर उन्होंने जहर पीकर आत्महत्या करने का विचार किया, इतने में ही करोडपति शेठ आ पहुँचे। कहने लगे "भाई मेरे पास जो धन है, वो तुम्हारा ही है, इसका उपयोग करो। उस दिन रात्रि के अंधकार में तुम्ही ने मेरे अंदर, दान का चिराग जलाया था, मुझे तभी से यह ज्ञान हुआ था कि मिट्टी की इस काया में भी दैवी मानव बैठा हुआ है। तुम्हारी इस विचार ज्योति ने ही मेरे भीतर दीप प्रगटाया है, अब तो मुझे बस देने में ही आनंद आता है।" यह कहकर शेठ के सामने चैक-बुक रख दी और शेठ को मुसीबत से उबार लिया। हमने देखा कि व्यक्ति की उदारता कैसा सुंदर काम करती है। हम यदि भले हो तो दुष्ट भी सुधर सकता है, दुष्ट में भी अच्छाईयां ही देखना, यही सम्यग् दृष्टि है। नालायक को लायक बनाना, कंजूस को दानी बनाना, इसी में हमारे जीवन का महत्त्व है। हम मन, वचन, काया से उदार बनेंगे तो लोकप्रियता तो कदम चूमेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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