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विचार औदार्य
अभी हम लोकप्रियता के सद्गुणों की चर्चा कर रहे हैं, जिसके वचन में और आचरणमें विश्वासजनक प्रेम है, लोग उसका साथ अवश्य देते हैं। सहकार्य और सेवा इस गुण की प्राप्ति होती है। जिसमें इन गुणों का विकास नहीं हुआ उस पर व्यक्ति तथा समाज आदरणीय दृष्टि कैसे रखेंगे?
जिस व्यक्तिने दूसरों के पैसे हड़प किये हों ऐसा व्यक्ति यदि धर्म की बात करता है, तो कौन सुनेगा? लोग कहेंगे “तुम तो पहले धर्म का आचरण करो।" समाज संस्थाओ में काम करने वालों को पहले आत्मशुद्धि का प्रयास करके फिर संस्थाओ में आना चाहिए, वरना ऐसे लोग सबके नुकसानकर्ता बनेंगे।
जो स्वयं विशुद्ध है वही लोकप्रिय बन सकता है, इसके लिए कौन से सद्गुणों को अपनाए एवं कौन से दुर्गुणों का त्याग करना इस पर विचार करेंगे। ऐसा एक आवश्यक सद्गुण है, चित्त-औदार्य! उदारता। व्यक्ति में मन, वचन, काया तीनों की उदारता चाहिए, जिसका मन कंजूस है वह दूसरों का हड़प कर लेता है। जिसके हृदय में ईर्ष्या की अग्नि है वह तो स्वयं जलता है फिर दूसरों को शीतलता कैसे प्रदान करेगा?
__कुछ लोग पैसे व्यय करने में उदार होते है, परंतु दूसरों के विचारों के प्रति उदारता नहीं दिखा सकते वो समझते हैं, “मैं सबकुछ समझता हूं, ये मुझे क्या समझायेगा?" परंतु सच तो यह है कि हमें सबके विचारों का
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