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________________ की वैचारिक सोच इतनी व्यापक है, जहां धार्मिक संकिर्णता को कोई स्थान नहीं है। पूज्य गुरुदेव चित्रभानुजी की विचारधारा तो कल कल करती सरिता की तरह है, जो सिर्फ मैत्री व प्रेम का सुगम संगीत गाती हुई आनंदसागर में समा जाती है। उनका कहना है कि, जीवन बांस है इससे लडो मत, इसकी बांसुरी बनाओ जीवन संगीत बन जायेगा | आपके व्यापक दृष्टिकोण का लक्ष्य, सतत जगबंधुत्व और जीव मात्र के कल्याण का रहा है। इसके कारण यह पुस्तक इक्कीस सुरभित पुष्पों का गुलदस्ता बन गई है, इसका पठन, चिंतन, मनन निश्चित ही हमारे जीवन में शांति व अध्यात्म की सौरभ फैला कर जीवन धन्य करेगा। इस पुस्तक की चार गुजराती आवृत्तियां 'धर्म रत्नना अजवाला नाम से प्रकाशित हुई थी । यह पुस्तक अप्राप्य थी। अब इस पांचवी आवृत्ति का हिन्दी अनुवाद श्रीमती पुष्पा एफ. जैन ने पूर्ण भक्तिभाव से किया है। एवं उसका परिमार्जन युगद्रष्टा श्री युगराजजी जैन ने किया है। तत्पश्चात् इस पुस्तक को प्रुफ संशोधन से लेकर कलात्मक ढंगसे मुद्रित करने का कार्य सुभाष जैन ने किया है। ये सभी धन्यवाद के पात्र है। दानवता के क्रूर जबड़ों में कराह रही मानवता को यकीनन राहत देने वाली ये पुस्तक इस मौलिक युग की दशा व दिशा बदलने में समर्थ होगी। Jain Education International 5 For Private & Personal Use Only - प्रकाशक www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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