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" महाजनो येन गतः स पन्था: " महाजन यानि जिनमें विशिष्ट तत्त्व के गुण भरे हैं, उनके बताए पथ पर चलो तो मुसीबतों से बच सकोगे। हाँ वृद्धत्व का संबंध मात्र जीर्ण-शीर्ण हो चुके शरीर से नहीं है बल्कि सूझबूझ से है ।
एक राजा की सभा में एक शेठ आया, राजा ने उसकी उम्र पूछी, पुत्र कितने, संपत्ति कितनी ? पूछा। शेठ ने कहा, “मेरी उम्र दस वर्ष, पुत्र कितने ? मुझे पत्ता नहीं, और संपत्ति चालीस हजार की ।" लोग उसे जानते थे अतः सुनकर हैरानी हुई, राजाने इन तीनों बातों को स्पष्ट करने को कहा।
शेठ के कहने का आशय अलग था। जब से इन्द्रियों को जीतने की शुरूआत की, आत्मबुद्धि जगी, उस समय से उम्र गिनने की शुरूआत की । जब से जीवन में धर्मबीज पड़े, चिंतन, मनन, त्याग, संयम का प्रवेश हुआ तब से ही सही अर्थ में जिन्दगी की शुरूआत हुई । जीवन के जो वर्ष आहार, भय, मैथुन, परिग्रह आदि में गये उनकी क्या गिनती ? वे व्यर्थ गये ।
अब ऐसा धार्मिक व्यक्ति आहार में आसक्त न बने, नींद को चिंतन से जीते, भय के समय अभय रहे, भोग को योग से जीते। परिग्रह को संतोष से पुष्ट करे, इस तरह इन पाँचो को जीता, वहां से धर्म की शुरूआत हुई ।
बाह्य चारित्र ही काफी नहीं, जब सम्यक्त्व आता है, अन्दर से परिवर्तन आता है। जब तक प्रदर्शन की भावना है, स्वदर्शन नहीं मिलता। ये दोनों साथ नहीं रह सकते। या तो प्रदर्शन करो या स्वदर्शन की और मुड़ो ।
जो अंतर दृष्टि रखने वाला है, जिसकी बुद्धि परिपक्व है, बातों में मिठास है, कटुता नहीं, जैसे पके हुए आम का स्वाद सब को मीठा लगता है, वैसे ही जिसके विचार सुनकर आनंद जगे, वही वृद्ध है। नीतिवचन में कहा भी गया है- ज्ञानेन वृद्धः स वृद्ध !
आज वृद्धों में उपरोक्त गुण बहुत कम दिखाई देते हैं। उम्र के साथ कटुता बढ़ती है। सही बात तो यह है कि जिन्दगी का अनुभव प्राप्त करने के बाद, उन्हें शांति के सरोवर और वात्सल्य का झरना बन जाना चाहिए, प्रसन्नता से वातावरण हल्का बनाना चाहिए ।
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