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वस्तु के हार्द के दर्शन
धार्मिक व्यक्ति का कोई भी कदम जल्दबाजी का नहीं होता, उसके कार्य में छिछेरापन तथा आवेग का भी अभाव होता है। कहीं, कभी आवेग आ भी जाता है तो धार्मिक व्यक्ति विवेक से काम लेता है। दीर्घचिंतन रहित तथा आवेग में किए हुए कार्य का परिणाम, अधिकतर अच्छा नहीं आता।
मानव मात्र को सब सुंदर ही अच्छा लगता है, घर भी व्यवस्थित, स्वच्छ हों तो ही मन प्रसन्न रहता है। मैली, कुचैली तथा बेढंग की कोई भी वस्तु भला किसे पसंद आती है? बोलने में भी शब्दों की रचना व्यवस्थित हों तो सामने वाले का हृदय परिवर्तन हो सकता है।
“A thing of beauty is a joy forever" दुनिया में सुंदर वस्तु तथा सुंदर वाणी सबको पसंद है, आनंददायक है। जो हमें प्रिय है, वही दूसरों को भी प्रिय है, जो हमें अच्छा नहीं लगता वह किसी को भी अच्छा नहीं लगता।
संस्कारी, सभ्य व्यक्ति सबको अच्छा लगता हैं, हम यही चाहते हैं । कि सारा जगत अच्छा बने, परंतु पहले हमें अच्छा बनना चाहिए, तभी हमें अच्छे की प्राप्ति हो सकेगी।
लोग तो चाहते है, साधु सद्गुणी होने चाहिए, वो महेनत करें और उन्हें बिना श्रम किए ही सब प्राप्त हो जाए। यह तो ऐसी बात हुई कि कोई
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