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परंतु वृद्धावस्था में ये भाव शान्त हो जाते हैं, शान्त, निर्मल भावों द्वारा प्रभु के संग मन का मिलन करना है, आत्मा का विचार करना है। लोगों के साथ सत्कथा करना है, और ऐसे करते करते, जैसे पवन के झोंकों से फूल नीचे गिर जाते हैं, वैसे ही आँखे बंद हो जाती हैं ।
हाँ आज परिस्थिति बदल गई है, बुढापे में भी काम करना पडता है, हाँ जरूरी हों तो काम करो, परंतु उसके पीछे मत भागो । जो सहज मिले, स्वीकारो परंतु उसके पीछे बेचैन मत बनो।
हम तो जिंदगी में जीवन ढूंढने निकले हैं, यही हमारा जीवन ध्येय है। मानव जीवन केवल घर में पड़े रहने के लिए नहीं मिला है, परंतु सच्चा मानव जीवन जीने के लिए मिला है। बिल में रहनेवाले सर्प की तरह लोभी तथा क्रोध से क्रूर बना हुआ जीवन नहीं जीना है, अपितु सद्गुणों से प्रकाशित सत्कथ जीवन जीना है । तभी मानव जीवन सार्थक बनेगा ।
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