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अखंड जीवन
- हमने देखा कि धार्मिक व्यक्ति अच्छी कथा कहने वाला होता है, इसीलिए उसे 'सत्कथा' कहा है। लोगों के जीवन में गुप्त और उजागर दो हिस्से हो गये हैं। मन में कुछ, मुंह में कुछ। कहना कुछ और करना कुछ। ऐसा करने से लोगों के आंतरिक जीवन कलुषित हो जाते हैं। दोहरी जीवन जीने वालों को जीवन में हमेशां दो विभाग रखने पड़ते हैं।
सही जिंदगी में “एगो वा परिसहो वा' अकेले हो या परिषद में, समूह में, विभाग जैसा कुछ नहीं, जीवन तो सरल होना चाहिए। जिस तरह एकांत में रहते हो, वैसे ही समाज में बर्तो, बोलो, विचार करो जब तक हम ऐसा जीवन नहीं जियेंगे, हमारा मन ऊंचा नहीं उठेगा। मन यदि खराब होगा तो जैसे गर्म तवे पर पानी की बूंदो के पड़ते ही, फौरन भाप बनकर उड़ जाती है, वैसे ही धर्म के अमृत बिन्दु ऐसे मन पर पड़ते ही जल जाएंगे।
हमारा पहला कर्तव्य यह है कि समाज को सुंदर बनाने से पहले अपने मन को सुंदर व स्वस्थ बनाएं। अन्दर कुछ, बाहर कुछ, ये दंभ की दिवारें जीवन में अंतराय रूप बनती हैं। कथनी और करनी में अन्तर नहीं होना चाहिए, ज्ञानियों के छोटे वाक्यो में धर्म का मर्म समाया होता है, उन पर हमें चिंतन करना चाहिए।
दीपक की ज्योत जब, दूसरी ज्योत में मिलती है, तो बिना विरोध के
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