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________________ मंगल मंदिर के पथ पर धर्म रत्न प्रकरण में महापुरूष अपने को मंगल मंदिर तरफ ले जाने का प्रयत्न करते हैं। मंदिर पहुंचना प्रत्येक मनुष्य का ध्येय होना चाहिए। जीवन मात्र एक व्यथा, दुख, तडप बनकर रह गया है, उससे उबरने के लिए धार्मिक व्यक्ति के हृदय में झंकार जागृत होती है। विश्व के सभी जीवों को तारने का विचार, ऐसे करूणामय हृदय वाले ही कर सकते हैं। - मोक्ष का यह मंदिर बहुत ऊँचा है, यदि एक एक कदम भी उसकी और बढायेंगे, प्रयत्न करेंगे तो एक दिन इस मंगल मंदिर तक हम जरूर पहुंच जाएंगे। शुद्धि, शुद्धि को लाती है, अशुद्धि अशुद्धि को लाती है। हम प्रयत्न करेंगे तो बुरी आदतें स्वतः छूटती चली जाएंगी, यह कुदरत का नियम है। मंगल मंदिर तरफ जाने की यह एक भावना है, प्रस्थान है। - मानव जीवन का हेतु क्या है? हमें जो ढूंढ़ना है उसके लिए श्रवण, मनन और चिंतन उत्तम साधन है। घोर अंधेरा है, मार्ग कठिन है, पर श्रद्धा बल से धर्मजीवन की पगडंडी पर चल रहे हैं, तो हम अपने ध्येय के करीब पहुंच रहे हैं। आदमी की दृष्टि, विचार, आचार शुद्ध होने चाहिए। लज्जा रूपी दीवार से चारित्र्य, संयम रूपी पानी सुरक्षित रहता है। कोई भी अनुचित कार्य करने पर, आँखो पर भार बढ़ता है, तो समझना चाहिए अभी लज्जा बाकी है, आगे बढ़ने का अवसर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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