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________________ षष्ठ - अशुचि भावना दीपक की लौ जो व्यक्ति सम्मोहात्मक अवस्था या किसी भी प्रकार की मूर्च्छा में है, वह अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं करता है। क्यों नहीं? क्योंकि उसकी इच्छा किसी और के वशीभूत है। वह किसी और के आदेश पर चल रहा है, सम्मोहन करने वाले के सुझाव पर निर्भर है। इसलिए वह व्यक्ति कार्य तो करता है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। अगर आप गौर करेंगे, तो आप यह नहीं बता पाएँगे कि उसके कार्यकलाप स्वेच्छा से उत्पन्न होते हैं या किसी दूसरे के सुझाव से। ठीक ऐसा ही हमारे जीवन में होता है। हम जिस तरह घूमते-फिरते हैं, वस्त्र पहनते हैं, भोजन करते हैं, बातचीत करते हैं, सोचते हैं और क्रियाएँ करते हैं, वह किसी और प्रकार की मूर्च्छा है। हम अलग-अलग क्रियाओं से गुज़रते हैं। हम कई तरह के कार्यों में व्यस्त रहते हैं। लेकिन क्या हम जान पाते हैं कि हमारे कार्य स्वयं की अभिज्ञता से हो रहे हैं या किसी और के सुझाव से? क्या हम जान पाएँगे कि हम किस दबाव के अनुसार जी रहे हैं समाज, राजनीति, धर्म, व्यापार द्वारा निर्मित ढाँचों, यानी संसार की अनेक विचार प्रणालियों के अनुसार ? क्या हमने बाह्य संसार के प्रभावों को इस तरह आत्मसात कर लिया है कि हमारी सोच, इच्छा, पसंदगी और नापसंदगी, क्रिया और प्रतिक्रिया सभी कुछ इनके दबाव में है? या क्या हमारा जीवन हमारी इच्छानुसार, हमारी अभिज्ञता से चल रहा है? शायद हम बाहरी प्रभाव एवं स्वयं की इच्छा के बीच का अंतर नहीं समझ पाते हैं। जो कारण हमारी सोच एवं जीवन को रंग रहे हैं, हम उनको अलग नहीं कर पाते हैं। इसलिए हम उसी कार्य को करते रहते हैं। हम उसी पथ पर चलना जारी रखते हैं, उसी प्रक्रिया को गहरा करते जाते हैं, उसी जीवनचर्या को दोहराते हैं। इसीलिए ध्यान की आवश्यकता है। ध्यान मनुष्य की चेतना को सम्मोहनमुक्त करने की प्रक्रिया है । यह इस शिक्षण का मर्म है। मन, शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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