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जीवन का उत्कर्ष
सुखद एवं प्रेममय हो जाते हैं, क्योंकि अब घुटन नहीं है। यहाँ बंधन भी नहीं है, यह जीवन से जीवन का असली संप्रेषण है।
स्वयं की वास्तविकता जानते हुए, आप सभी प्राणियों में सत्य के, वास्तविकता के दर्शन करेंगे। अब आप करुणा का अर्थ जान जाएँगे। करुणा किसी मनुष्य, पेड़-पौधे या प्राणी के स्वरूप को नहीं, उसके जीवन को देखती है। एक बार अब्राहम लिंकन ने एक सुअर को कीचड़ में फँसा देखा। उन्होंने अपने चालक से गाड़ी रोकने को कहा। वे कीचड़ में उतरे
और सुअर को बाहर निकाला। उन्हें अपने पहने हुए कपड़ों की चिंता न थी। उन्होंने आकार से परे जाकर जीवन की पीड़ा को महसूस किया।
करुणा है स्वयं से कहना, 'अगर मैं उस परिस्थिति में रहता, तो कैसा महसूस करता?' जब आप पीड़ा को देखेंगे, तो आपका हृदय वहाँ जाकर जीवन को बोझ से ऊपर उठाने की कोशिश करेगा। इस तरह, आप जीवन और आकार को एक मानने की अपनी पुरानी आदत से बाहर आ सकेंगे। अब आप आकार को और कुछ नहीं; बल्कि आंतरिक जीवन की बाह्य अभिव्यक्ति के समान देखेंगे।
आप यह भी देखने लगते हैं कि आकारों के इस संसार में कुछ भी नित्य नहीं है - वस्तुओं, भावनाओं और विचारों में भी। हो सकता है कि आप सोचें कि आपके पास बहुत ‘आवश्यक' कार्य हैं, लेकिन अगर गहराई से सोचेंगे, तो जीवन जीने और विकास करने के अलावा और कुछ भी जीवन का परम ध्येय नहीं है। राजकोट में एक पुलिस अफसर था जो मुझसे मिलना चाहता था। वह मुझसे कुछ बात करना चाहता था। मैं ज़रा व्यस्त था, अतः मैंने सुझाव दिया कि अगली सुबह मिलें तो उसने कहा, 'कल मुझे बहुत काम है, मुझे एक ज़रूरी मुकद्दमे की सुनवाई के लिए अदालत जाना है। कृपया करके आज मिलें।' हमने उसी दिन शाम को चार बजे मिलने का निश्चय किया।
कुछ घंटों बाद मेरे एक सहपाठी ने आकर खबर दी, 'उस पुलिस अफसर का देहांत हो गया है।' वह सोच रहा था कि अगले दिन उसे एक बड़े मुकद्दमे में हाज़िर होना है, लेकिन भाग्य ने उसकी तारीख को बदल दिया।
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