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________________ निर्भरता से मुक्ति जब साधक अकेलेपन पर ध्यान करता है, तब संभव है कि भय रेंगता हुआ आ जाए। 'मैं अकेला हूँ? क्या इस संसार में कोई भी नहीं है जिसे मैं अपना कह सकूँ?' शायद ऐसा विचार आने लगे। शायद यह विचार आपको भयभीत करे और आप निराश हो जाएँ। जब ऐसा होता है, तब स्वयं को एक नए ढंग में देखना आवश्यक है। स्वयं को एक व्यक्ति के जैसे, एक जीवन शक्ति के जैसे देखें। ध्यान में अपनी आत्मा की गत्यात्मक, प्रबल वास्तविकता को देखें। जैसे ही आप इस ऊर्जा पर केंद्रित होंगे, आपको अनुभूति होगी कि आप नित्य हैं, अपने भविष्य के रचयिता हैं। प्राचीन ग्रंथों में इसे सिंहवृत्ति कहा जाता है। जंगल का सिंह बड़े झुंड में नहीं चलता। आप चिड़ियाघर में कई सिंहों को एक साथ देख सकते हैं, मगर बीहड़ वन में नहीं। वहाँ हर सिंह के पास अपना डेरा, अपनी माँद, अपना राज्य होता है। एक सिंह अकेला रहना चाहता है। साथ ही उसके हृदय में कोई भय नहीं है। वह जानता है कि वह राजा है। ध्यान में यह सिंहत्व उभरना चाहिए। हमें उस निडरता का अनुभव करना चाहिए। एक बार एक सिंहनी की मौत हो गई और उसका छोटा सा शावक बीहड़ वन में भटक गया। एक गड़ेरिये ने उसे देखा और घर ले गया। वह सिंह-शावक को अपनी भेड़-बकरियों के साथ पालने लगा। वह शावक उनके साथ बढ़ने लगा, दिन प्रतिदिन विशाल और शक्तिशाली बनता गया। एक दिन जब सिंह-शावक सभी भेड़-बकरियाँ के साथ चर रहा था, तब अचानक एक बड़ा सा सिंह उनके चारागाह के ऊपर पहाड़ पर आकर ज़ोर से दहाड़ने लगा। उसकी दहाड़ सुनकर सभी भेड़-बकरियाँ और सिंह शावक भागने लगे। दहाड़ने वाले सिंह ने सब को भागते हुए देखा और सोचने लगा, 'हाँ, इन्हें तो भागना ही चाहिए, मगर वह सिंह-शावक क्यों भाग रहा है?' वह शावक के पीछे भागा और उसे पकड़ लिया। शावक डर के मारे रेंकने लगा। तब सिंह उसे जल के पास ले जाकर उससे कहने लगा, 'तुम क्यों रेंक रहे हो? तुम तो एक सिंह हो! इस जल में अपनी परछाईं को देखो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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