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________________ ४२ जीवन का उत्कर्ष जिस क्षण से आप इस संसार में आए हैं, आप दृश्य के माध्यम से अदृश्य की तह को खोलने का प्रयास कर रहे हैं। मानव जीवन और कुछ नहीं, उस अमूर्त का प्राकट्य ही है। एवं इस प्राकट्य से बहुत सारे गुण सामने आ जाते हैं। किसी पौधे के बीज को देखिए। कितना साधारण दिखता है ! मगर जब वह खुलकर अंकुरित होता है और एक सुंदर फूल को प्रकट करता है, तब हमें एहसास होता है कि उस नन्हे से पीले, सफ़ेद, या काले बीज के अंदर कितना सौंदर्य छिपा हुआ था। प्रारंभ में हम बीज पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते, मगर जब वह बीज अपने संपूर्ण सौंदर्य को अनावृत करता है, तब हम उस पर ध्यान देने लगते हैं। इसी तरह अनादि समय से इस अदृश्य आत्मा में संपूर्ण सौंदर्य रहा है। अब यह मानव जीवन के माध्यम से अनावृत हो रहा है। बीज के आधार पर आकार का सृजन होता है। बीज के गुण ही उसके परिणाम, उसका पुष्पहास निर्धारित करते हैं। अगर हमारे पास गुलाब का बीज है, तो गुलाब का फूल उगेगा। अगर हम आम के बीज बोएँगे, तो बीज अपना दिल खोलकर एक रसीले आम के पेड़ में बदल जाएगा। जब सेब का बीज बढ़ता है, सेब नज़र आते हैं। जब आपने उन नन्हें काले बीजों को पहले देखा, तब आपको सेब और आम दिखाई नहीं दिए। फिर भी आप अपनी अभिज्ञता में जानते हैं कि उनके पास अद्भुत गुण हैं। अपनी उस नन्हीं सी शुरुआत पर ध्यान कीजिए। पीछे मुड़कर देखिए और कहिए, 'मैं अकेला आया था, वहाँ आनंद था, भय नहीं, कोई व्यसन नहीं।' आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आपके व्यसन जितने बढ़ेंगे, बुढ़ापा उतना ही शीघ्र आएगा। व्यसन जितने कम होंगे, आप उतने ही जवान रहेंगे। लोग अपने तनाव और चिंताओं के कारण मुरझा जाते हैं। जब आप छुट्टी पर हैं, तब अपने आप को देखिए। आप तरोताज़ा महसूस करते हैं। क्यों? क्योंकि आपके पास कोई माँगें नहीं हैं, न ही कोई खिंचाव। माँगें और व्यसन आपका क्षय करती हैं। भले ही आप सोचें कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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