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________________ जीवन का उत्कर्ष असली अनाज को घुन से छानना सीखो। फिर तुम जान सकोगे कि क्या नित्य है और क्या अनित्य है।' । छानने की प्रक्रिया एक आंतरिक प्रक्रिया है। उसके लिए आपको अपने भीतर आना होगा। पहले वस्तुओं के नश्वर रूपों को पहचानें और स्वीकार करें। तभी आप प्रकृति की वृत्ति का अनुभव करेंगे जो सतत परिवर्तनशील की अपरिवर्तनशील भूमिका है। इस प्रक्रिया से आप अपने शब्द का, अपनी अभिव्यक्ति का, अपने संबंधों का विवेक से चयन करना सीखेंगे। कृत्रिमता चली जाएगी। अब आप नहीं कहेंगे, 'मैं तुम्हारे लिए मर सकता हूँ।' यह कहना आसान है, मगर वास्तविकता में कोई किसी के लिए नहीं मरता। यह सब सिर्फ़ जताने की बात है। लोग सिर्फ अपनी आसक्ति के कारण मरते हैं, किसी और के लिए नहीं। किसी भी शब्द को कहने से पहले उसे महसूस करें। उसका आस्वादन करें। जैसे 'आम' शब्द सुनने वाले व्यक्ति के मन में आम का स्वाद और उसकी लालसा जगती है, उसी तरह आप भी अपने अंदर शब्द के असली अर्थ का अनुभव करें। जब आपको इस सत्य की अनुभूति होगी, तब हर शब्द सीधा आपके अनुभव से निकलेगा। आपको शब्दों के जाल बुनने की जल्दबाज़ी नहीं होगी। ऐसे कई महान कवि और लेखक हुए हैं जिन्होंने ज़्यादा नहीं लिखा, मगर जो भी लिखा, भावना की गहराई से लिखा। उनकी लेखनी उनकी अनुभूति से उत्पन्न हुई, वह उनकी भावना की अभिव्यक्ति थी। और ऐसी गहराई से जो भी शब्द निकलता है, अमरत्व को प्राप्त करता है। ऐसे शब्दों में अमरत्व का स्पर्श निहित है।. . . अब हम आत्म निरीक्षण की गहराई में उतर रहे हैं। अनाज में से घुन अलग करते हुए, हर शब्द में हमारी भावना की यथार्थ अभिव्यक्ति करते हुए, हम वहाँ पहुँच जाते हैं, जिसे हम 'मैं' कहते हैं। यह 'मैं' क्या है? क्या यह नश्वर 'मैं' है जो अस्सी या नब्बे वर्ष तक रहता है? जब शरीर निष्क्रिय हो जाएगा, तब वह कहाँ जाएगा? क्या वह अँधेरे में गम हो जाता है या उसमें अमरत्व का कोई गहरा भाव है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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