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________________ १५४ जीवन का उत्कर्ष धर्म का चौथा अर्थ है -प्रकृति या स्वभाव- धम्मो वत्थु सहावो। हर वस्तु की अपनी प्रकृति होती है। मिठाई की प्रकृति है मीठा लगना। काँटे की प्रकृति है चुभना। आग की प्रकृति है जलाना। नमक की प्रकृति है खारा लगना और गुलाब की प्रकृति है सुगंध बिखेरना। जब आप ध्यान करते हैं, तब अनुभूति कीजिए कि हर वस्तु अपनी प्रकृति के अनुसार ही कार्य करती है। शरीर, मन और आत्मा अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। इसलिए यह समझ लें कि किसी भी आकार को दोष देना निरर्थक है। वस्तुओं को उनके स्वभाव में देखें। जब आप चीज़ों को इस अविकृत रूप में देखेंगे, तो आप स्वयं तय कर सकते हैं कि आपको क्या चाहिए। जब आप लोगों की प्रकृति जान जाते हैं, आप उनसे आसानी से निपट सकते हैं। जैसे, चोट पहुँचाना किसी व्यक्ति की प्रकृति नहीं होती, वह उसकी वर्तमान स्थिति है। यदि कोई व्यक्ति इस हानिकारक स्थिति में पाया जाता है, तो आप समझ सकते हैं कि यह किसी पूर्व अनुभव का नतीजा है। वह अपनी पीड़ा को किसी और पर थोपने का प्रयत्न कर रहा है। वास्तव में हमारी प्रकृति है प्रेममय होना, परदुःखकातर होना, सत्यवती होना, और उन्नयनशील रहना। इसे जानकर हम एक दूसरे के प्रति धीरज रखते हैं, और अपने आपके प्रति भी। हमें जानना होगा कि किसी नवीन संबंध या नवीन अध्यवसाय में रत होने से पहले इंतज़ार करना सीखें, अवकाश देना सीखें। पहले उस व्यक्ति, स्थान या वस्तु को अपनी प्रकृति का खुलासा करने का अवसर दें। एक बार एक संत नदी के किनारे रह रहे थे। उन्होंने एक बिच्छू को पानी में गिरते देखा। यह देखकर कि वह डूब रहा है, उन्होंने उसे हथेली पर रखकर किनारे पर डाल दिया। जैसे ही बिच्छू हथेली पर चढ़ा, उसने संत को डंक मार दिया। उन्हें पीड़ा हुई और उन्होंने घाव को कपड़े से ढक लिया। बिच्छू फिर से पानी के पास गया और कूदने लगा। संत ने सोचा, 'मूर्ख बिच्छू।' एक बार फिर वे करुणा से भर गए। पास में एक व्यक्ति खड़ा था जो यह सब देख रहा था। उसने संत से कहा, 'आप क्या कर रहे हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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