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________________ विरल अवसर १४१ आप अपने अतीत से अलग हो जाएँगे, अपने भविष्य से दूर हो जाएँगे और पूछेगे, 'जब मैं सभी से अपने आपको अलग कर लूँ, तो क्या बचता है? जो बचता है, वह मैं हूँ। जो बचता है, वह मेरा जीवन है। इसी को इस समय संप्रेषण करना कहते हैं।' वह यहाँ है, इसी समय है और निरंतर संप्रेषण कर रहा है। यह ग्यारहवाँ चिंतन, बोधि दुर्लभ, बुद्धि के स्थूल तत्त्वों को नष्ट करने में मदद करता है। आप इन्हें इतना सूक्ष्म बना देते हैं कि वे आपके सहायक बन जाते हैं। आप समझने लगते हैं कि आप आत्मा के सिवा कुछ नहीं हैं। आप समझने लगते हैं कि आत्मा का और कोई ध्येय नहीं है, साहचर्य में रहने के सिवा। बस, अब यहाँ से उपलब्धि का विचार पीछे छूट जाता है। हम सब उपलब्धि के भाव की ओर उन्मुख हैं। कई लोग पूछते हैं, 'आपने अपने जीवन में क्या हासिल किया है?' यदि आप इस प्रश्न पर विचार करते रहें, तो आप इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि आप एक विफल व्यक्ति हैं। आप सोच सकते हैं, 'मैंने क्या पाया है? कुछ नहीं। मेरा सारा जीवन व्यर्थ गया।' मैंने ये शब्द सभी वर्गों के लोगों से सुने हैं। वे कहते हैं, 'मुझे लगता है कि मैं विफल रहा हूँ। मैं चिकित्सक बनना चाहता था, पर मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था। मैं वकील बनना चाहता था, पर मुझे सही अंक नहीं मिले। मैं अभिनेत्री बनना चाहती थी, पर मुझे मौका न मिल सका। मैं अच्छा जीवन साथी पाना चाहता था, पर सबने मुझे धोखा दिया।' मैंने लिपिक देखे हैं जो प्रबंधक बनना चाहते थे, प्रबंधक देखे हैं जो मालिक बनना चाहते थे। यह इस बात का सबूत है कि लोग किस तरह विफलता के विचारों के साथ जीते हैं। उपलब्धि क्या है? जब मैं कॉलेज में था, मैंने भारत के सबसे अमीर और शक्तिशाली राजाओं में मैसूर के महाराजा कृष्णराजवाडियार को अपनी चिता में राख का ढेर बनता हुआ देखा। बाद में मैंने उनके सारे हाथी-घोड़े, नौकर-चाकर और सेना को उनके राजमहल में लौटते देखा। जिसके पास इतनी सारी संपत्ति थी, वह अकेला जंगल में पड़ा था, राख का एक ढेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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