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________________ विरल अवसर १३५ मना लेंगे, मगर उस व्यक्ति का क्या जो बिलकुल निराश और हताश हो गया है? क्या तुमने इस बारे में सोचा है?" बुद्धि एक दुधारी तलवार है। वह दोनों तरफ से काट सकती है। उसका उपयोग विकास के लिए हो सकता है या संदिग्ध बातों को उचित ठहराने के लिए, यह कहकर कि इनके पीछे भगवान का हाथ है। इसी तरह की बुद्धि के कारण कुछ व्यक्ति भगवान के नाम पर पशुबलि को भी उचित ठहराते हैं। भगवान के नाम पर जानवरों को कत्ल करते हैं। भगवान मांस का भोग नहीं करते, पर पुरोहित खाते हैं, यह कहते हुए, 'धन्यवाद ।' धन्यवाद किसको ? उस बुद्धि को जो विकृत करती है, जोड़-तोड़ करती है एवं अज्ञात, अदृश्य भगवान के नाम पर जानवरों के कत्ल को उचित ठहराती है। इस तरह से तो किसी भी कार्य को न्यायसंगत ठहराया जा सकता है । व्यभिचार को तांत्रिक सिद्धि बताकर उचित ठहराया जाता है। यदि आप उसका विरोध करें, तो लोग कहते हैं कि आप नहीं जानते कि आप क्या कह रहे हैं, आप समय के साथ नहीं चल रहे हैं। कुछ लोग नशीले पदार्थ खाकर अपने मस्तिष्क की कोशिकाओं को जला डालते हैं, लेकिन इसे उचित ठहराते हुए कहते हैं, 'मैं स्वर्ग में हूँ, मैं इतने सारे रंग देख रहा हूँ।' यदि आप उन्हें समझाएँ कि यह वहम मात्र है, तो वे आपका मज़ाक उड़ाते हैं। यदि आप उनसे कहें कि वे जो कुछ देख रहे हैं, उसका कोई मतलब नहीं है, तो वे कहते हैं, 'तुम्हें कैसे पता? क्या तुमने कभी ये दवाएँ ली हैं?" ये सब ऐसे रास्ते हैं जिसके द्वारा मन रूपी सीढ़ी हमें नीचे की ओर ले जा सकती है। इसीलिए गुरुजन नवदीक्षितों से ज़ोर देकर कहते हैं कि मन को शुद्ध करो; वह कच्चे तेल के समान है। उसे परिष्कृत करना आवश्यक है। यदि आप हवाईजहाज में अपरिष्कृत तेल डालेंगे तो क्या होगा? वह आपको ऊपर नहीं ले जाएगा। तेल का उपयोग करने से पूर्व उसे पेट्रोल बनने की प्रक्रिया से गुज़ारना होगा। एक बार वह शुद्ध हो जाए, तो हवाईजहाज में - उसका उपयोग हो सकता है। आप उस पर निर्भर रह सकते हैं। आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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