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________________ १३४ जीवन का उत्कर्ष है। यह उन्हीं में से एक होगा। अन्यथा, जब उस युवक ने अपना बटुआ गिराया तब मैं ही यहाँ क्यों था, और कोई क्यों नहीं? मेरे मन में चोरी की बात नहीं है। मैंने कुछ चुराया नहीं है। भगवान ने मेरी झोली में यह बटुआ फंका है। यह एक दिव्य उपहार है। मैं इसे अस्वीकार कैसे करूँ? यह भगवान का अनादर होगा! हर चीज़ के पीछे कोई कारण होता है, और यह मेरे लिए एक संकेत है।' इस तरह कुतर्क करता हुआ वह बटुआ लिए खुशी से घर चला गया। घर पर उसकी सुंदर और शांत पत्नी राह देख रही थी। जब वह शराब की बोतल लेकर घर में प्रविष्ट हुआ, उसने अपनी बीवी से कहा, 'आज रात हम खुशियाँ मनाएँगे!' ____ 'यह कैसे हो सकता है?', उसकी बीवी ने पूछा, 'हमारे पास तो धन नहीं है।' 'जब तुम्हें भगवान पर विश्वास हो, तो वह तुम्हारी मदद करता है, पति ने कहा। 'मानवीय मन कल्पना भी नहीं कर सकता कि भगवान ने उसके लिए क्या सोच रखा है; आज मुझे तीन सौ डॉलर मिले।' पत्नी ने पूछा, 'यह तुम्हें कैसे मिले?' _"एक युवक जा रहा था और उसने अपना बटुआ गिरा दिया, उसने पत्नी से कहा, 'वह मेरे रास्ते में पड़ा था, एक दिव्य उपहार। मैंने उठा लिया। मैंने और कुछ नहीं किया।' । पत्नी ने बड़ी कोमलता से समझाया, 'क्या तुमने नहीं सोचा कि जब वह खुशी से घर जाएगा, क्योंकि उसे आज ही एक सप्ताह का वेतन मिला है, तो मेरी ही जैसी कोई दूसरी युवती उसकी राह देख रही होगी? जब वह उससे कहेगा, 'देखो मैं वेतन के पैसे लाया हूँ!' और जेब में हाथ डालेगा और देखेगा कि जेब खाली है, तो उसे जो गहरा दुःख होगा, क्या तुम उसकी कल्पना कर सकते हो? उसके अवसाद की कल्पना कर सकते हो? जब उसे पता चलेगा कि उसकी सात दिनों की मेहनत बेकार हो गई, तो उसे कैसे लगेगा? हम तो रात को अच्छा खाना खा लेंगे और जलसा भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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